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साहित्योपासक]
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लिए जीवन के आवश्यक पदार्थों मे न थी। घर में गये जरूर कि पत्नी को जगाकर पैसे माँगे, पर उसे फटे-मैले लिहाफ में निद्रा-मग्र देखकर जगाने की इच्छा न हुई। सोचा शायद मारे सर्दी के बेचारी को रात-भर नींद न आई होगी, इस वक्त जाकर ऑख लगी है । कच्ची नीद जगा देना उचित न था। चुपके से चले आये। '
चाय पीकर उन्होंने कलम दवात सँभाली और वह किताब लिखने में तल्लीन हो गये, जो इनके विचार में इस शताब्दी की सबसे बड़ी रचना होगी, जिसका प्रकाशन उन्हें गुमनामी से निकालकर ख्याति और समृद्धि
के स्वर्ग पर पहुँचा देगा। - आध घण्टे बाद पत्नी आँखें मलती हुई आकर बोली-'क्या तुम चाय पी चुके १ प्रवीण ने महास मुख से कहा-हॉ पी चुके । बहुत अच्छी बनी थी। ___ 'पर दूध और शक्कर कहाँ से लाये ?
दूध और शक्कर तो कई दिन मे नहीं मिलता। मुझे आजकल सादो चाय ज्यादा स्वादिष्ट लगती है । दूध और शक्कर मिलाने से उसका स्वाद बिगड़ जाता है । डाक्टरों की भी यही राय है कि चाय हमेशा सादी पीनी चाहिये । योरप में तो दूध का बिलकुल रिवाज नहीं है। यह तो हमारे यहाँ के मधुर-प्रिय रईसों की ईजाद है।"
'जाने तुम्हें फीकी चाय कैसे अच्छी लगती है। मुझे जगा क्यों न लिया ! पैसे तो रखे थे। । ।
- महाशय प्रवीण फिर लिखने लगे। जवानी ही में उन्हें यह रोग लग गया था, और श्राज वीस साल से वह उसे पाले हुए थे। इस रोग मे देह घुल गई, स्वास्थ्य गया, और चालीम की अवस्था मे बुढ़ापे ने श्रा घेरा; पर यह रोग असाध्य था। सूर्योदय से आधी रात तक यह साहित्य का उपासक अन्तर्जगत् में डूबा हुश्रा, समस्त' संसार से मुंह मोड़े हृदय के पुष्प ओर नैवेद्य चढ़ाता रहता था। पर भारत में सरस्वती उपासना लक्ष्मी की अभक्ति है । मन तो एक ही था। दोनों देवियों को एक साथ कैसे प्रमन्त्र