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भारतीय साहित्य की विशेषताएँ ] .
१५ सौन्दर्य तो क्या, हाँ उलटे नीरसता, शुष्कता और भद्दापन ही मिलेगा। भारतीय कवियों को प्रकृति की सुन्दर गोद में क्रीड़ा करने का सौभाग्य प्राप्त है; वे हरे-भरे उपवनों मे तथा सुन्दर जलाशयों के तटों पर विचरण करते तथा प्रकृति के नाना मनोहारी रूपों से परिचित होते हैं। यही कारण है कि भारतीयं कवि प्रकृति सश्लिष्ट तथा सजीव चित्र जितनी मार्मिकता, उत्तमता तथा अधिकता से अकित कर सकते हैं तथा उपमा, उत्प्रक्षाओं के लिए जैसी सुन्दर वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं वैसा रूखे-सूखे देशों के निवासी कवि नहीं कर सकते । यह भारत भूमि की ही विशेषता है कि यहाँ के कवियों ' . का वर्णन तथा तत्सभव सौन्दर्य ज्ञान उच्च कोटि का होता है।
प्रकृति के रम्य रूपों से तल्लीनता की जो अनुभूति होती है, उनका उपयोग कविगण कभी-कभी रहस्यमयी भावनाओं के संचार में भी करते हैं । यह अखड भूमंडल तथा असख्य ग्रह उपग्रह, रवि-शशि, अथवा जल, वायु, अग्नि, आकाश कितने रहस्यमय तथा अक्षय हैं। इनकी सृष्टि संचालन आदि के सम्बन्ध में दार्शनिक अथवा वैज्ञानिकों ने जिन तत्वों का निरूपण किया है वे ज्ञानगम्य अथवा बुद्धिगम्य होने के कारण नीरस तथा शुष्क है । काव्यजगत् में इतनी शुष्कता तथा नीरसता से काम नहीं चल सकता, अतः कवि-' गण बुद्धिवाद के चक्कर में पड़कर व्यक्त प्रकृति के नाना रूपों में एक अव्यक्त 'किन्तु संजीव सत्ता का साक्षात्कार करते तथा उससे भावमग्न होते हैं । इसे हम प्रकृति सम्बन्धी रहस्यवाद कह सकते हैं, और व्यापक रहस्यवाद का एक अंग मान सकते हैं । प्रकृति के विविध रूपों में विविध भावनात्रों के उद्रेक की
क्षमता होती है, परन्तु रहस्यवादी कवियों को अधिकतर उसके मधुर स्वरूप से । प्रयोजन होता है, क्योंकि भावावेश के लिए प्रकृति के मनोहर रूपों की जितनी
उपयोगिता है, उतना दूसरे रूपों की नहीं होती। यद्यपि इस देश को उत्तरकालीन विचारधारा के कारण हिन्दी में बहुत थोड़े रहस्यवादी कवि हुए हैं, परन्तु कुछ प्रम प्रधान कवियों ने भारतीय मनोहर दृश्यों की सहायता से
अपनी रहस्यमयी उक्तियों को अत्यधिक सरस तया हृदयग्राही बना दिया है। ___ यह भी हमारे साहित्य की एक देशगत विशेषता है ।