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[हिन्दी-गद्य-निर्माण सिक सुख और कल्याण - के देने वालों को मार कर अपने सुख के लिए , शारीरिक राज्य की इच्छा करना है. जिस डाल पर बैठे हैं उसी डाल को स्वर्ग : ही कुल्हाड़े से काटना है । अपने प्रिय जनों मे रहित राज्य किस काम का! प्यारी मनुष्य जाति का सुख ही जगत् के मंगल का मूल साधन है । विना उसके सुख के अन्य सारे उपाय निष्फल हैं । धन की पूजा से ऐश्वर्य, तेब, बल और पराक्रम नहीं प्राप्त होने का । चैतन्य आत्मा की पूजा से ही ये पदार्थ प्राप्त होते हैं । चेतन्य-पूजा ही से मनुष्य का कल्याण हो सकता है । समाज को पालन करनेवालो दूध की धारा जव मनुष्य के प्रेममय हृदय, निष्कपट मन और मित्रता-पूर्ण नेत्रों से निकल कर वहती है तब वही जगत् में सुख के खेतों को हरा-भरा और प्रफुल्लित करती है और वही उनमें फल भी लगाती है। प्राश्रो यदि हो सके तो टोकरी उठा कर कुदाली हाथ में ले मिट्टी खोदे और अपने हाथ से उसके प्याले वनावे । फिर एक-एक प्याला घर-घर मे, कुटिया-कुटिया में रख आवें और सब लोग उसी में मजदूरी का प्रेमामृत पान करे। ' है रीति आशिकों की तन मन निसार करना ।
रोना सितम उठाना और उनको प्यार करना ॥ ..
हिन्दी में भावव्यंजकता [पं० श्यामविहारी मिश्र एम० ए० और पं० शुकदेवविहारी मिझ बी० ए.]
हमारी हिन्दी भाषा की उत्पत्ति संवत् ७०० के लगभगे हुई थी, किन्तु । अनेकानेक प्रकट कारणों से यहाँ प्राचीन काल में गद्य की उन्नति नहीं हुई। सबसे प्राचीन हिन्दी गद्य लेखक महात्मा गोरखनाथ हुए, जो एक प्रसिद्ध धर्म के प्रवत्तक थे । आपने गद्य में एक अन्य लिखा अवश्य, किन्तु उसमें भी साधारण धर्मोपयोगी विषयों के अतिरिक्त कोई विशेष वर्णन नहीं है। इन महात्मा के पीछे अकबर के समय में दो-चार गद्य लेखक हुए, किन्तु फिर भी गद्य की उन्नति विशेष नहीं हुई, और वर्तमान गद्य का वास्तविक प्रारम्भ लल्लूलाल श्रीर सदल मिश्र के समय से हुया ! इसके पीछे से अब तक गद्य