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मजदूरी और प्रेम ] ,
. .. १५ हैं, उसमें उसके हृदय का प्रेम और मन की पवित्रता सूक्ष्म रूप से मिल जाती है और उसमें मुर्दे को जिन्दा करने की शक्ति आ जाती है । होटल में . वने हुए भोजन यहाँ नीरस होते हैं क्योंकि वहाँ' मनुष्य मशीन बना दिया जाता है । परन्तु अपनी प्रियतमा के हाथ से बने हुए सूखे-रूखे भोजन में कितना रस होता है । जिस मिट्टी के घड़े को कंधों पर उठाकर, मीलों दूर से उसमें मेरी प्रेममग्न प्रियतमा ठंडा जल भर लाती है, उस लाल घड़े का , जल मैं पीता हूँ, अपनी, प्रेयसी के मामृत का पान करता हूँ। जो ऐसा प्रेम घ्याला पीता हो उसके लिये शराव क्या वस्तु है ? प्रेम से जीवन सदा गद्-, गद् रहता है । मैं अपनी प्रेयसी ऐसी प्रेम-भरी, रस-भरी, दिल-भरी, सेवा का वदला क्या कभी दे सकता हूँ?
उधर प्रभात ने अपनी सुफेद किरणो से अँधेरी रात पर मुफेदी-सी छिटकाई इधर मेरी प्रेयसी मैना अथवा कोयल की तरह अपने विस्तर से उठी। उसने गाय का बछड़ा खोला; दूध की धारों से अपना कटोरा भर लिया । गाते-गाते अन्न को अपने हाथों से पीसकर सुफेद पाटा बना लिया इस सुफेद श्राटे से भरी हुई छोटी सी टोकरी सिर पर; एक हाथ मे दूध भरा हुआ लाल मिट्टी का कटारा, दूसरे हाथ मे मक्खन की हॉडी । जब मेरी प्रिया घर की छत के नीचे इस तरह खड़ी होती है तब वह छत के ऊपर की श्वेत प्रभा से भी अधिक आनददायक, वलदायक और बुद्धिदायक जान पड़ती है। उस समय वह उस प्रभा से भी अधिक रसीली; अधिक रंगीली, जीती-जागती, चैतन्य और अानदमयी प्रातःकालीन शोभा-सी लगती है। मेरी प्रिया अपने हाथ से चुनी हुई लकड़ियों को अपने दिल से चुराई हुई एक चिनगारी से लाल अग्नि में बदल देती है । अब वह आटे को छलनी से छानती है तव मुझे उसकी छलनी के नीचे एक अद्भुत ज्योति की लौ नजर आती है। जब वह उस अग्नि के ऊपर मेरे लिए रोटी बनाती है तब उसके चूल्हे के भीतर मुझे तो पूर्व दिशा की नभोलालिमा से अधिक आनंददायिनी लालिमा देख पड़ती है । वह रोटी नहीं, कोई अमूल्यपदार्थ है। मेरे गुरू ने इसी प्रेम से संयम करने का नाम योग रखा है । मेरा यही योग है। .