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[हिन्दी-गद्य-निर्माण रात को भी कुछ मयस्सर न हुआ । अव वह एक-एक टॉके पर प्राशा करती है कि कमीज कल तैयार हो जायगी; तब कुछ तो खाने को मिलेगा। जब वह थक जाती है तब ठहर जाती है। सुई हाथ में लिए हुए है, कमीज बुटने पर छिपी हुई है, उसकी आँखों की दशा उस श्राकाश की जैसी है। जिसमे वादल वरस कर अभी-अभी बिखर गये हैं। खुली आँखें ईश्वर के ध्यान में लीन हो रही हैं। कुछ काल के उपरान्त “हे राम' कह कर उसने फिर सीना शुरू कर दिया। इस माता और इस वहन की सिली हुई कमीज मेरे लिए मेरे शरीर का नहीं मेरी आत्मा का वस्त्र है । इसका पहनना मेरी तीर्थ-यात्रा है । इस कमीज मे उस विधवा के सुख-दुःख, प्रेम और पवित्रता के मिश्रण से मिली हुई जीवनरूपिणी गंगा की बाढ़ चली जा रही है । ऐसी मजदूरी और ऐसा काम-प्रार्थना, संध्या और नमाज से क्या कम है ! शन्दों से तो प्रार्थना हुआ नहीं करती। ईश्वर तो कुछ ऐसी ही मूक प्रार्थनाएं सुनता है और तत्काल सुनता है। ।
प्रेम-मजदूरी । मुझे तो मनुष्य के हाथ से बने हुए कामों में उनकी प्रेममय पवित्र अात्मा की सुगन्ध आती है । राफल आदि के चित्रित चित्रों में उनकी कलाकुशलता को देख, इतने सदियों के बाद भी, उनके अन्तःकरण के सारे भावों का अनुभव होने लगता है । केवल चित्र का दर्शन ही नही, किन्तु साथ ही, उसमें छिपी हुई चित्रकार की आत्मा तक के दर्शन हो जाते हैं । परन्तु यन्त्रों की सहायता से वने हुये फोटो निर्जीव से प्रतीत होते हैं। उनमें और हाय , के चित्रों में उतना ही भेद है जितना कि वस्ती औ श्मशान में। .
हाथ की मेहनत से चीज में जो रस भर जाता है वह भला लोहे के द्वारा बनाई चीन में कहाँ ! जिस भालू को मै स्वयं बोता हूँ मैं स्वयं पानी देता हूँ; जिसके गिर्द को घास-पात खोदकर मैं साफ करता हूँ उस आलू में जो रस मुझे आता है वह टीन मे वन्द किये हुए अचार मुरब्बे में नहीं आता ! मेरा विश्वास है कि जिस चीज मे मनुष्य के प्यारे हाथ लगते