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हिन्दी भाषा का विकास ] __ बोल सकते । वोलने की शक्ति कुछ और ही है कविता की कुछ और तथा . विशेष चमत्कृत रचना की ओर है । अस्तु ईश्वर द्वारा सृष्टि-रचना के अधिक . श्राश्चर्यदायक रचना वेद की है और इसमे तो सन्देह किसी को भी नहीं है
कि वेद से प्राचीन साहित्य आज लभ्य नहीं है। . → . . अवश्य ही भारत में नवीन युग का प्रारम्भ हुआ है । नये अन्वेषण __ और आविष्कार के ये दिन हैं । नित्य नये सिद्धान्त स्थिर हो रहे हैं । सात • समुद्र पार, सहस्रों कोस की दूरी पर बैठे पश्चिमीय विद्वान् आज हमारे प्राचीन साहित्य की मनमानी समालोचना कर रहे हैं । वे ऐतिहासिक जांच
की अोट में हमारी सभ्यता, आचार-विचार और धर्म पर भी चोट चलाते हैं . कहीं-कहीं अनुमान और अटकल के सहारे ऐसी ऐसी अनोखी बातें बतला - चलते हैं कि जिनसे भारत का कायापलट अथवा अाय्यगौरव सर्वस्व का वारा
न्यारा होना सहज सुलभ हैं । जो यद्यपि सचमुच स्वाभाविक होते हुये भी कितनों ही को भ्रमोत्पन्नकारी हैं । अब यह कौन कह सकता है कि भारत के प्राप्त महामहिम महर्षि और परम प्रतिभावान् एक से एक उत्कट प्राचीन पण्डितों द्वारा निश्चित हमारे शास्त्रों के परम्पराप्राप्त अर्थों और सिद्धान्तों के विरुद्ध उन विदेशियों के अनुमान और प्रमाण वावन तोले पाव रत्तो सटीक
और सच्चे ही हैं ? अथवा कहीं से कुछ भी उनमें असावधानी वा आग्रह का लेश नहीं है ? ग्रन्थ एक ही है, जिससे हमारे देशी और विदेशी विद्वान् भिन्न -भिन्न अभिप्राय निकाल लेते हैं । एक ही मुकद्दमे की मिसिल से दोनों पक्ष के वकील दो प्रकार का प्रमाण सग्रह करते और परिणाम निकालते हैं । जननी
और विमाता दो लड़कों को पालती, पर उन दोनों के पालन में भेद होता, है । जैसे इन दिनों जब तक कि रजिस्ट्री न हो जाय सच्चे से सच्चा दस्तावेज भी प्रामाणिक नहीं माना जाता वैसे ही जब तक कोई पश्चिमीय विद्वान् स्वीकार न कर ले, कोई प्रमाण प्रमाणित नहीं कहा जाता। प्रमाणित न माना जाय, अदालत डिग्री न दे, तो भी क्या वह सच्चा दस्तावेज वास्तव में झूठा है । एक दिन भारत ही से विद्या विज्ञान और सभ्यता सारे संसार में फैली थी। अाज पश्चिम से ज्ञानसूर्य का प्रकाश हुआ है और निःसन्देह अव