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[हिन्दी-गद्य-निर्माब वैष्णवता की पुष्टि इससे उत्तम और क्या हो सकती है कि उनके चरण निर्गत जल को शिर पर धारण करे । ऐसे विष्णु भगवान् को परम शैव लिखा है कि विष्णु भगवान् नित्य सहन कमल पुष्पों से सदाशिव की पूजा करते थे। एक दिन एक कमल घट गया तो उन्होंने यह विचार करके कि हमारा नाम कमलनयन है अपना नेत्र-कमल शिव जी के चरण-कमल को अपण कर दिया। सच है अधिक शैवता क्या हो सकती है ! हमारे शाखार्थी भाई ऐसे वर्णन पर अनेक कुतर्क कर सकते हैं । पर उनका उत्तर हम कभी पुराण-प्रतिपादन से देगे । इस अवसर पर हम इतना ही कहेंगे कि ऐसे-ऐसे संदेह विना कविता पढ़े कभी नहीं दूर होने के । हा, इतना हम कह सकते हैं कि भगवान् विष्णु की शैवता और भगवान् शिव की वैष्णवता का अलंकारिक वर्णन है । वास्तव मे विष्णु अर्थात् व्यापक और शिव अर्थात् कल्याणमय ये दोनों एक प्रेम स्वरूप के नाम हैं । पर उनका वर्णन पूर्णतया असंभव है अतः कुछ कुछ गुण एकत्र करके दो स्वरूप कल्पना कर लिये गए हैं जिसमें कवियों की वचन शक्ति के लिये आधार मिले ।
'हमारा मुख्य विषय शिवमूर्ति है और वह विशेषतः शैवों के धर्म का श्राधार है । अतः इन अप्रतयं विषयों को दिग्दर्शन मात्र कथन करके अपने शैव भाइयों से पूछते हैं कि आप भगवान् गंगाधर के पूजक हो के वैष्णवों से किस विरते पर द्वष रख सकते हैं ? यदि धर्म से अधिक मतवालेपन पर श्रद्धा हो तो अपने प्रमाधार भगवान् भोलानाथ को परम वैष्णव एवं गंगाधर कहना छोड दीजिये। नहीं तो सच्चा शैव वही हो सकता है जो वैष्णव मात्र को अपना देवता समझे । इसी भांति यह भी समझना चाहिये कि गंगा जी परमशक्ति हैं । इससे शवों को शाक्तों के साथ भी विरोध अयोग्य है । हमारी, समझ में तो आस्तिक-मात्र को किसी से द्वष बुद्धि रखना पाप है । क्योंकि सव हमारे , जगदीश ही की प्रजा हैं, सव हमारे खुदा ही के बन्दे हैं । इस नाते सभी हमारे .. आत्मीय वन्धु है पर शैव समाज का वैष्णवों और शाक्त लोगों से विशेष . सम्वन्ध व्हरा । अतः इन्हें तो महामैत्री से परस्पर रहना चाहिये। शिवमूर्ति । में अकेली गंगा कितना हित कर सकती हैं । इससे जितने बुद्धिमान् जिनना