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________________ चूलिका। श्चित्त पहले आधा अर्थात् तीनमास पर्यंत पष्ठोपवास कर करके पारणा करना है। तथा उन माहेश्वरादिकके आत्माय बंधुओंके विघातका प्रायश्चित्त उससे आधा अर्थात् डेढ़ मास तकके षष्ठोपवास हैं ॥१२॥ ब्राह्मणक्षत्रविदच्छूद्रचतुष्पदविघातिनः। एकान्तरष्टमासाः स्युःषष्ठायन्ताश्च पूर्ववत्॥ अर्थ-लौकिक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ओर चोपाये इनका घात करनेवाले साधुके लिए पहलेकी तरह आधे आधे दीन आदि और अन्तमें षष्ठोपवासपूर्वक आठमास पर्यन्त के एकान्तरोपवास हैं। भावार्थ-लोकिक ब्राह्मणके घातका प्रायश्चित्त आठ मास पर्यन्त एकान्तरोपवास करना है। प्रथम वेला कर पारणा करे उसके बाद उपवास कर फिर पारणा कर उपवास करे एवं आठ महीने तक करे और अन्तमें भी वेला करे। सारांश आदि और अन्तमें वेला करे और मध्यमें एक एक दिन छोड़कर उपवास करे। इसी तरह क्षत्रियके घातका पायश्चित चार महीने तकके एकान्तरोपवास वैश्यके घातका दो मासपर्यन्तके एकान्तरोपवास, सुतार (खाती) आभीर (गोपाल ) कुम्हार आदि शूद्रोंके विघातका एक माह तकके एकान्तरोपवास, और चौपायोंके घातका प्रायश्चित्त पंद्रह दिन तकके एकान्तरोपवास हैं। तथा आदि और अन्तमें सर्वत्र वेला करना भी है ॥ १३ ॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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