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[ ६८ ] तू अकल मल आतमा, तू सबली ससमाथ । तीन भुवन श्रवै तना, नाग नरा सुर नाथ ॥१५४॥ ग्वाळा साथै गोविंदौ, गोविंद साथै ग्वाल । तूं स्याळां ना सूर करै, सूरां करें ले स्याळ ॥१५॥ मरद झाल महिला करे, महिला करै मरद । तू प्रागै दसरथ तरणां, राकस थाये रद्द ॥१५६।। असुर मार तू आतमा, निमो तुहारा नाम । मारै ता समपै मुगति, राकस तारै राम ॥१५७|| अघ्रम करै अन्याय अति, नाख नही नरिग। साध रहै ससार मा, राकस रहै सरिग ॥१५८।।
कवित्त ॥ राकस रहै सरिंग, घणो गरढी घणनामी। तू सील साहिबा, जून रिणि अन्तरजामी। तु न्यायी नारियण, अंक तू नहीं अत्याई। गरव पहारी ग्यांन, भरत सत्रघण रौ भाई। सुहिद्रां वीर सरवरो सदा, भद्रा तणी भरतार भड़। सिव तरणी मित्रसुर जेठ रो, विसन करा कुरण तूझ वड़ ॥१५॥ विसन तूझ सिव ब्रह्म, श्रेव करता पड सूका। दैत तणे पहलाद, नाम 'ताहरा न मूका। अरिजण बळ आखियो, सामि तूना नह छोडां। तुझ तरण तुडतांरण, हम कुण करिस होडां । सत नै घरम सतोष सहि, सीळ साच सगळा सधर । तत पाच तीन गुण महा तत, श्रेवे तोना सखवर |१६०॥ सख तुहार मुकरि, वळ चक्र पदम विराजै । हरि-गाकस ना हण, ग्यांन पोरस करि गाजे । हुरी सीह हैरान, देव सहि तोहा डरिया । दारणव सहि दाटिया, अंक पहिळाद उधरिया। .