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| दूहा।। परा परा सिगळां परा, तु गरढो गोपाळ । नद महर रे बाळ तू चौद लोक रख पाळ ॥४५॥ ज्ञान सचर सज्ञान है, बड़ी ग्यान पतिसाह । शान चरित मां कहि गुणी, ग्यान जड़ाउ जडाउ ॥ ४६॥ ग्यान गभीर गभीर सौ, उरळी कोड़ि अनेक । पावक साँ ऊन्हो प्रघळ कोडि थोक प्रभ एक ॥४७॥
कवित्ति कोड़ि थोक करतार हेम हुँता ठाढौं हरि । कोडि जम है किसन किसन वाखाण इसो करि। कोडि थोक करतार सव तीरथ पग भारी । अनाथ नाथ अनाथ ना करतो नर सौ नि कीयो। आपमा जोर सरसो अनत कोडि कोड़ि अधिको कियो।। ४८।। कोड़ि थोक करतार पवन हूँता बळ प्रघळ । कोड़ि वधती कोडि गगजळ हुँति निरमळ । अधिको कोड़ि अनत धरणि हुँता खिम्या,धर । ऊँचौ कोड़ि असख वहत नीची कहि अवर । सरसती हुँति विद्या सिरै विमळ अकळ कहिज विसन । सूर सां तेज विणियो सरस कोडि कोड़ि वधतो किसन ॥४६।। किसन नाम कल्पत करै कल्पित किताई । च्यारि खारिंग चकचूरि कर मन हूँत कमाई । सहि वाजी सामटे अमर नर नाग उधेडे । हुये आप हेकली फूक सां अवर फोडे । महि गिल मेह पाणी पवन, सूरिजि ससि भाजे सरै।
भुयण नाथ विद्या तरणी, धरणीधर मनछा धरी ।। ५० ।। 'धरै एह गिर धरण मोह छोडे माया सा । दया विहूँग दई, काम एकिरिण काया सां।