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निकलंक नाथ जिरिण नाम निजि सूरितिपाख सुहामणा। भालीअल सदा देख भगत भाग तरणा ल्या भामणा ॥२६॥ भाग तणां भामणा ल्यां भूधर दुख भंजण । विहला ना वीठला मुगिति सारूप समपण । साधा नां साजोति रांक सालोक लिये रस । सामी मुगिति- समीपि मुझ समपी जोडा जस । कोडि हेक जिगन दस कोडि तप सरव धरम तीरथ सिंही। कलि मांहि हेक पीरदान कवि नाम सरीखौ के नही ॥३०॥ नाम लियंतां नाम सामि सूझै सहि सूझ। राम तणे रस माहि सेस वूझे सिवि बुझे। परम तणो रस पीय, सदा सिनिकादिक सारा । ब्रम तणो रस ब्रहम ल्यै के ब्रह्म विचारा । नाम नै चरण छोडै नही गग गौरि गावतरी। अहिल्या अने तारा तवै सीत मात सावंतरी ॥३१॥ . सावतरी सामि रा करै वाखाण किताई। रुखमागद इविरीक साव नारद सवाई। पारासुर पहलाद सेस गगेव महेसुर । अरिजरण नै अकरूर व्यास रिषि वारट ईसर । वभीखण लिये ऊवव बकै अति उवारणा अनतरा । जगदीस किया आपह जिसा भगत एह भगवतरा ॥३२॥
॥दोहा॥ भगत हुये भगवंत निज, भगवत करै भगति। निमो निमो हूँ न लहा, ग्यान तुहारा गति ॥३३॥ ग्यान चरित ग्यानह समंद, ग्यान तत त्री नाम । ग्यान प्रबोध सवोज गुरण, रोज करै बह राम ॥३४॥ ऊए प्राणी नां उयै अनत, वैकठि लिये वधाई। ग्यान चरित गुण गाइरे, ग्यान समद गुण गाई ॥३॥