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[ ४३ ] एक बुरौ अहिकार भरम निरसी भारतीजे।' क्रोध कलह कुछि निही दान अविगत दाखीजे। ग्यान ना एक अजरौ गरव ग्यान नाम गोविंद री। भगवत ज्ञान भगता सरसि राज समापी इद रौ ॥२५॥ इंद अनंत अपार विसिनि ले रोम वसाया। रोमि रोमि ब्रहमंड असख ब्रहमंड उपाया। रोम रोम ऊपरी रहै सायर जल सारा । एकरिण रोम अनंत वस कविलास विचारा। इंदि ने अरक रहै रोम मा किसन नमो तुकाम नां । आदेस ए आदेस अति राम तुहारे रोम नां ॥२६॥ रोम तणौ रुघनाथ पार सिव सकति न प्राम। नरहर रै नाभ में जोनि ब्रहमा विप जामै । रुद्र इग्यारह राम तुहीज जगि ज्याग महाजप.। महा तप तु मूल जोग अष्टंग अन अप। आकास तेज प्रिथिमी इनिलि पांच तत निसिदिन पर्ण । महा तत घडे भाजै मुकद महातत तुनां मणे ॥२७॥ मरणं महा तत मद पाच तत चाकर पास। गग नदी गोवदि नाथ निति चलण निवास । सक कोड़ि तेतीस चरण राखे उर उपरि । लिखिमी चाहै चरण परम रीजै इहिडी परि । उपजै प्रेम मन उलस वाला लागै लछिवर । माहरै रिदै विचि मिडिया चरण तुहारा चक्रवर ॥२॥ चक्र सामि सख सामि पदम पति अनां गदापति । प्रीतवर पगरण भला फाविति' इसी भति । महि कट मेखल कहै कानि मकराइ कि कु डल । उरि वैजती माल रिदै कुसटामिरिण कमल ।
प्रीतवर पाल कहै कानि मसटामिरिण के