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[ २६ ] 'फरसिराम पाउघ ग्रहियो फरसु ,
अधिक रेसीया खत्री लागो अरसुं। निमो रामचंद राघव रूघनाथु,
भाई लखमण अनै सत्रघरण भरथु। भगत वछल दसरथ वो भगवानं,
गयो जिनक सां मिलण केवल-गियानं । लियौ पछै वनवास लक हूँत लड़ियो,
अभग नाथ असुरा सरिस आवि अड़ियो। सती. सीत रा कंत असुरा सघार,
विसन ताहरा कमरण, लाभ विचारं । असुर मार ने अजोध्या ग्रामि आयौ,
वडे हेत सा उठि भगते वधायो। विसभ तूझ ना निमो लीला विलास,
केहर तूझ वाल्ही घणी कविलासं। निगुण नाथ आदेस वलिराम नागु,
त्रिगुण किसन रा वीर तू सख त्यागु । किसन तूझ ना हिमैं कासू : कहीज,
रहै कोप नह कोप रीज न रीजै । किसन किसन दीपान आदेस कीधी,
राजा राम तू अजे रीधो न रीधी। लखण लहै कुण लछिवर तूझ लीला,
किसन ताहरी निमो करतार कीला। निमो ब्रिजरा वाळ स्रग लोक वासी,
आया नद रै आगणे अविणासी । अला नंद रै आगणे माहि नाचे,
अला राम रा सहज अ साचि राचे । अला वाप चरिताळ हाथे बंधावे,
अला हेत सा जसौदा हुलरावै । अला वन मां जाइ मुरली वजावै,