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मथियो के फेरा महंण, भगते भरिया भूक। तें दीन्ही वसदेव तरण, फेरा कितरा फूक ॥११॥ वावा तू वाण विरिदि, अइऔ पुरिखि अलाह। . सहसावाहु सारिखा, गिळिया कितरा ग्राह ॥११॥ रिखवदेव हैग्रीव हरि, नाराइण नरसिंघ . पारि उतारै पीर नां, तू परमेस त्रिसिधि ॥११७॥ वळिभद्र वुध तू नां विरिद, सबळा चंडिस सेस । परौ उधार प्रांणीयौ, पीर कहै परमेस ॥११८।। , इति श्री परमेसर पुराण संपूरण लिखियो छ ।
संवत् १७६१ जेठ सुदी ७।