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[ २ ] कवि ने अपनी रचनाओं मे ईश्वर के सगुण और निर्गुण दोनो ही रूपों का वर्णन किया है। कभी तो वह कबीर के "दसरथ सुत तिहूँ लोक वखाना, राम नाम का मरम है आना।" को दोहराता है'जगत कह सहि दशरय जायी, अविगत धारौ नाम अजायो।' और कभी वह प्रभु के साकार रूप का गुणगान करता है। डिंगल गीतों में वह विभिन्न अवतारों की महिमा बताता है । अवतार वाद का कारण वह भी गीता की भांति अधर्म का नाश मानता है। जव जव धर्म की हानि और अधर्म का अभ्युत्थान होने लगता है तव तव साधुओं की रक्षा और दुष्टों का दमन करने हेतु भगवान् अवतार लेते हैं। पीरदान के शब्दों मे -
प्रावं तू आप लियौ अवतार, भड़ांभड भोमि उतारण भार ।
यद्यपि कवि ने अपनी रचनाओं का नामकरण करते हुए ईश्वर के निराकार रूप की ओर भी सकेत किया है यथा “अलख आराध", "अजंपा जाय" आदि। पर इसमे कोई सन्देह नही कि उसकी दृष्टि . प्रधानतः सगुण पर ही रही है । सगुण का उसने विस्तार से जो वर्णन किया है उसका कारण भी है । उस काल मे सगुणोपासना की भावना वलवती थी अत. कवि की रचनाओ मे भी प्रधानता उसी की रही। कवि के काव्य का सूक्ष्म अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उसकी भक्ति दास्यभाव की है। उसने अपने लिए 'पीरदास', 'पीर', 'पीरीय' आदि नामो का प्रयोग क्रिया है । 'पीरदास' नाम तो बार-बार आया है___ "पीरदास करजै प्रथम, पुरुपोत्तम सूप्रीत ।"
पीरदान के काव्य की एक बहुत बड़ी विशेषता है कवि की उदार दृष्टि । उसने यथास्थान सभी देवताओ को नमस्कार किया है क्योकि उसका विश्वास है "सर्वदेव नमस्कार. केशव प्रति गच्छति" । कभी. वह मगलाचरण मे सरस्वती-वन्दना करता है, कभी गणेश की स्तुति करता है। शाक्त परिवार में जन्म होने के कारण वह दुर्गा को भी