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________________ [ १५ ] कमेर (५६) नल कूवर । | करा (१)—करू । कर (४१)—हाथ । (६८, ६६)-करे। करग (६३) हाथ । | कराने (५)-करवाता है। करणा (५०, ५२)-करुणा । करि (२७, ३८, ४५)—करके । करणाकर (१००)-करुणाकर, दया- (३४)–करिये । सागर । करिजे (३२) करिये। करणी (१०३)—करूं, करना। करिजो (6)—करिए। करता (२३)-कर्ता, रचने वाला। करिणाळा (१६)—वीर, तेजस्वी । करतौ (९६)—किया करता, करता करिया (४८)-करिए। हुआ। करिस (१२, १७, ७२) करेगा। करत्ता (६४)—कर्ता, रचयिता करिहो (३४)-करिए। करनाळि (६६)-१ एक प्रकार का करीम (6)-कृपालु, महरवान । वडा ढोल जिसे चलती गाडी पर वजाया जाता था। २. एक करीस (६६) करेगा। प्रकार का फूंक-वाद्य नारसिंह, | करै (३६, ४४, ४७)-करते है। करौं (२३)—करू, करता हूँ। करमा (९५)-भक्त स्त्री का वाई जो करौ (५९)-करते हो, करता है । जगन्नाथपुरी मे रहती थी। । करौ (९६)कीजिये । * यहाँ पर निम्न आख्यान से अर्थ स्पष्ट हो सकेगा नल कूवर कुवेर के पुत्र थे । एक बार अपने भाई मणिग्रीव के साथ ये कैलाश पर्वत के समीप उपवन मे जलक्रीडा कर रहे थे । अधिक शराव पी लेने के कारण अपनी स्त्रियो सहित ये नग्न हो गये और इनको अपनी नग्नता का भान तक न रहा । इधर महर्षि नारद प्रा निकले । इनकी औरतो ने तो तुरन्त वस्त्र पहिन लिए किन्तु ये दोनो निर्लज होकर नग्न ही खडे रहे । नारद जी ने इन्हे श्राप दिया कि तुम विना वस्त्र पहने ठू० की तरह खड़े हो जावो, वृक्ष बन जाओ। भोपू ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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