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हुई बह लछीय हारोहार, विमारणसण गोपि कर तिण बार। निकुगुरडासण बंठा नाथ, सुखासण रेवत रथ समाथ । पयादोइ नगै पाउ परम, वहै अति अातुर चातुर बम । विमाळ न कीध न ताळ विमाळ, चत्रभुज धायौ छूटी चाल । खगेसुर छेतरियो पग खेह, निरंतर धायो एम नरेह । वदा तांई वैरण किती एक वार, आयौ हथिणापुर पंथ अयारि। कुसमथळी हथणापुर केथि, तईकम आइ पोहतो तेथि । पीतंबर धारीय चकर पाण, सवे अटपटीय पाघ सुहाँण । महोरति अखि तण अध माहि, आपांणांय दीध दीदार स आइ । पचाळीय दीध दीदार प्रिथम, परै करि धीरज दीध परंम । दीदार स पच पडवा दीध, क्रिपा निज नाथ क्रिपा बह कीध । दजोवरण देखे नाहि दयाळ, छभा विच ऊभा कान्ह छोगाळ । निकु दुसासन देख नाथ, सम विच ऊभा सामि समाथ । वदै दरजोधन एम विसेख, दुसासन काह रह्यो हव देखि । पचाळोय पलवि छोडि पलीत, देखे पच पडव देव दईत । मोरै मुख प्रागळि देव मझारि, निरखे लोक नगी करि नारि। निरखे लोग लग नख चख महा सहि सूरति सुदरि मुख । अजाई ताई मुझ अछेह, न भागोइ नीधक छाती नेह । वदु ताइ वैरण किती एक वार, धरे सोइ चोर सरीरां धार । नवी ते माहि वळे नवलग, रुळ पग लग सपोत सुरंग । न दीसे चख न मुख न नख, सती मन माहि हुयो वह सुख । हुया हरि लज्या रखणहार, किसनइ मन प्रसंन करार। दुसासन हाथ पसारै दोई, वळं ते चीर लिया विसलोई । वळे वप ताईय होइ विभति, भलै रग पोति भलेरीय भंति । चद्रारिणणि नख सिखा लग चीर, सोहै हज पख सरीख सरीर। सोई दुसासन सगठ साह, बहादर खाचि लियो वळि बाह । वळ ते माहि पसाइ विसन, वरणे वप अंबर मेव वरन । वरी करि कढेइ वारोवार, हथोहथि पूरेय पूरणहार ।