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धाह, थाह खरसांग
उरेरो ।
घरोरो ।
प्रथिमि उडिस दोडे नी दोड़ि रे, घोड़ वडगड़े श्राव रथ ग्रहची, हाथ वाहिरा कहल | थारो दाखे भल । तू धानतर घरणी, भला कवि तरणी पुत्र साजो करे, कवि थारे रे काम छै । हरिदास ईए यारे हुग्रो, आलम आवे आहचे ॥ ४ ॥ वांग गंगा वहतेरा ।
सिधि सागर सारखा, "पंच तीरथी प्रिघळा, सेतवंदह सह तेरा /कासी सरखा किता, जमरण सरसती सिगळा जळ । परव तोया अरण पार, चित्रकोट उद्य/चळ । खरां 1 वदरी केदार सरीखा वहत, खॉरालंभ राखण उमरण करें तीरथ इता, श्रालंम चौरे ऊपरा ॥ ५ ॥
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