________________
[ १०८ ]
३० - कवित्त
श्रालमजी रा
+
।
हरि पैडी हरिद्वारि, नीर सोरंम रं वाह्या । मकै मदीने मांहि, प्राग वड़ -दरसरण पाया ॥ गया कोड़ि गोमती, कोडि जिंग तीरथ कीजे । कोडि वार दस कोडि, दान गावतरी दीजै ॥ इंद्र दमण उड़ीसे बीच अति, गोविंद गोवद गाईया । हो पीर लाय इतरो हुये, ग्रालम चोरें ग्राईयां ॥ १ ॥
1
रहमांगी राघवी पारि पहिले क्रिपा करते कान्ह श्रतघ संसार आज भले वातडे, आज रविवारू आज हुऔ आणद पाप नाठी पंन सेतले तरणा दरसरण सही, पीर कवेसरि पाइया । घन घडी आज मुहरत घन, ग्रालम चोरे ग्राइया ॥ २ ॥
पूगी ॥
पहचाया ।
तराया ॥
ऊगो ।
मांहि वैठो महाराजा ।
-
भिले भिले भेगां, सरव ग्रह हुआ भिले भिले भगवत, अघळ ताहरां असर कमळ विचि एक, दिलि भीतरि देवता, प्रभ तो नांम रे पीरिया, जिकुस कलांग तग्गा चरणा कने, आलम चोरे प्राणिया ॥ ३ ॥
रहे
रामइयो राजा ॥
सखरी जाणिया ।
सवाडा ।
प्रवाड़ा ||