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________________ [ 8 ] दईवारण सुरताण दीवारण तू ही ज देवा, माडिया मडारण केई समंद मथांरण । कुरवारण रहिमाण कुराण पुराण कहै, प्रापरी कल्याण दारण उग्रसेन प्रांग. IRIT राखसा पथळ राम महल आकास रेण, मचीणा रा सल सामी मांडि युध मल।। लिखमी टहल कर अहल न आवै लिगी, पंचाळी अलज पळ भिळे थारौ मल ॥३॥ गोपाळ ब्रिजरा वाळ गोवाळ गोवाळ गति । छोगाळ छत्राळ साई प्रतिपाळ साच । जादवां उजाळ नमो विरुदा विसाल जूना, डाँगथारी काळ माथै ससिपाळ डाच ॥४॥ जोईयों जवने विदे गुडिदा गुडिदे जूटे, कंस रे नरदे कही हलां तरणी हीव । चीतारै दुडिदै वर्दै चरणारविंदे चाहै, गोविंदे भगते गीदै तारीया गरीब ॥५॥ निरकार निरद्वार दईतां संघार निमो, प्रादेस अपार पार अवतार अंस । साधुग्रां सुधार सामी आविस्यै निजारसाह, __ काइमौ नंदकुमार, कस मार कंस ।। ६ ।। हैग्रीव वाराह हस ग्राहनां अथाह गति, पातिसाहा पातिसाह अरण्थाह पीर । दईतां री हीय दाह आविस्यै अलाह देखो। निलाह सलाह निमो नर नाह नीर ॥ ७ ॥ साधुआं सुधारौ सही पापिया विसार परा, - संभार चीतारै तिका तारै सिरताज ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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