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श्री आवू तीर्थ स्तवन
सालइ साल तणी परइ,
पनिंदा हो तिम जीभ सवाद ।।क०॥२२॥ पाप करम किम कीजीयइ, इम दोधा हो पर नइ उपदेस । आपणपइ ते आचरथा,ते जाणइ होतू हिज रिसहेस ।क०२३। तीने रतन अमूलक मइ, पाम्या हो वछित दातार ।। ते जिम जिम मुझ साभरइ,
किम थास्यइ हो सामीछूटकवार ॥क०॥२४॥ लोकालोक प्रकाशक, प्रभु पासइ हो वर केवलनाण । तिण कारणि जगजीवन,
कहु केतउ हो तू आरपइ जाण ॥क०॥२५॥ , हिव सरणागत ताहरइ, हूं आयउ हो निज नयण निहारि।
भवसागर बीहामण उ, तिरण हूंती हो मुझ पार उतारि ।क.२६ इम 'विमल' भूधर करणयगिरि सिरि, सामि सुरतरु सारिखउ । प्रगटियउ परमाणद पेखी, पुहवि पूगउ पारिखउ ।। युगपवर श्री 'जिनसिंहसूरि' सीसइ, राजसमुद्रइ' सुभ मनइ । अरदास आदि जिद आगलि, कही मगसिर शुभ दिनइ।२७। * ॥ इति श्री आलोयग गभित आदिनाथ स्तवनम् ।।
श्री आनू तीर्थ स्तवनम्
सुकलोणी प्रिउ नइ कहइ, एक सुगउ अरदास लाल रे। 'चालउ तीरथ भेटिवा, पूरउ मुझ मन आस लाल रे ॥१॥
आबू शिखर सुहामणउ, ऊंचउ गाउ सात लाल रे। बारह पाजरची तिहा, रिसियइ एकरण राति लाल रे ॥२॥