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जिमराजसरि-कृति-कुसुमागति
कोधी काम विटंबना, मद मातइ हो जे मइ जिनराज। हिवणां साहिब आगलइ,
ते कहितां हो मुझ आवइ लाज ॥क०॥१४॥ वात कहइ जे पाप नी, तिण साथइ हो करू निवड सनेह । जउ को सीखामणि दीयइ,
तउ जाणु हो वाल्हउ वइरी एह ॥क०॥१५॥ माया मंडी कारिमी, पर वंच्या हो मइ अरि अनुकूल । परगह मेल्यउ कारिमउ,
न विचारयउ हो ए अनरथ मूल क०॥१६॥ छती सति मई गोपवी, तप वेला हो अंगियालस आण। बालक जिम रस लोभीयइ,
पचखी नइ हो भागा पचखाण क०॥१७॥ चटकइ रीस चड़इ घणी, गण पाखइ हो कीघउ अभिमान । जारणपणउ सरसव समउ,
चिहुं माहे हो कहुँ मेरु समान ।।क०॥१८॥ आगम विरुध वचने करो, हठ मांडी हो मइ थाप्या तेह। बगसि गुनह ए बापजी,
हिव मोसु हो धरि निवड़ सनेह ।।१६।। धर्माचारिज हित भणी, जे आपइ हो सीखामणि सार। ए मुझ पापो प्राणियउ,
मन माहे हो करइ अवर विचार क०॥२०॥ बोल्या विद्यागुरु तणा, अभिमानइ हो जे अवरणवाद ।
* मई
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