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जिनराजसूरि कृति - कुसुमांजलि
बिमल गिरि ( श्री ऋषभदेव) वधामणा गीतम् राग - गुंड मल्हार
भाव धरि धन्य दिन आज सफलउ गिरणु,
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आज भई सजनी आणद पायो ।
हरख धरि नजरि भरि 'विमलगिरि' निरख करि,
कनक मणि रजत मोतिने वधाय ॥ १॥
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पग पनि उमंग धरि पंथ नितु पूछतां,
धन्न दोउ चलण जिण चलत आयउ ।
आज धन दोह जागी सुकृत की दशा,
आज धन जोह जिण सुजस गायउ || २ || दूर दूरगति टरी यात्र विधि सुकरी,
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पुण्य भंडार पोतड़ भरायउ ।
वदत मूनि 'राज' मनरंग सुरगिरि शिखरि
ऋषभ जिरणचंद मुरतरु कहायउ || ३ || श्री विमलाचल यात्रा मनोरथ गीत राग - धन्यासी
बरग बिछोहउ परिहरो, ध्यान धरइ निस दीस रे । पिण 'विमलाचल' वेगलउ, किम पूरवु जगदीश रे ॥१॥ सुरगु सुर मो मन करहला, काई सचीतउ आज़ रे । जउ मुझवंखत लिखित अछ, तर भेटिमु जिनराज रे ॥२॥
माम जपे जगगुरु तणर, होया म छंडे आस रे ।
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अवसरि वंछित परिसु, करिजे लोल विलास रे ॥३॥ साथ संवल दे करी, सइगू मेलि सुसाथ रे )