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श्री वर्तमान जिन चतुर्विंशतिका
वि०सह को विणजण जाइ, थे घर वइठा स्युकरउ वि०॥१ वि० साटउ जोडइ आप, वीचि दलाल न को फिरइ वि० । वि० लाखोणा लख कोडि, रतन भविक ले ले घिरइ वि०॥२ वि० लाहइ रा दिन च्यार, वालभ वार म लाविस्यउ वि० । वि० थासी लाभ अनत, जउ किम हाथ हलाविस्यउ वि०॥३ वि० वाहि छछोहा हाथ साथ चलाऊ सऊ अछइ वि० । वि० सुण लोकोनी वात, पचतावइ पडिस्यउ पछइ वि० ॥४ वि० पहुची साहिव सोम, विणज करउ मन मोकलइ वि० । वि० पूठ रखइ 'जिनराज' अरिअण मूल न को कलइ वि०॥५
(४) श्री अभिनन्दन गीतम् राग-परजीयउ ढाल चादलियो ऊगो हरणी प्राथमी ए० बे कर जोडी वीनव रे, अभिनदन अवधार रे । दयालराय । अन्तरजामी माहरउ रे, आवागमन निवारि रे।द०॥१॥बे० आगम वचने आकरू रे, साभलि करम विपाक रे ।द०॥ हुसरणागत ताहरइ रे, सरणइ आयउ ताक रे।द०॥२॥बे० मीटि अमीणी जउ करइ रे, तउ भाजइ भव भीड रे।द०॥ परमेसर पीहर पखइ रे, कुण जाणेइ पर पीड रे ।द०॥३॥०॥ उपगारी सिर सेहरउ रे, भयभंजण भगवंत रे ।द। अरिअण तउहिज़ अउहटइ रे, जउ पखउ करइ बलवंत रोद० हु अपराधी सउ परे रे, महिर करउ महाराज रे द० ॥ मेघन जोवइ वरसता रे, सम विषमी 'जिनराज' रे द०॥५॥बे०