________________
घाद गाया गया है। इनमे उनको चारित्रिक दृढता, अपनी भक्ति भावना, उनकी महानता अपनी लघुता का वर्णन है । कवि उन्हे आँखो मे बसाना चाहता है. अपने हाथो से उनकी पूजा करना चाहता है और चाहता है अपनी जिह्वा से उनका सकीर्तन करना'इण परि भाव भगति मन पारणी, सुध समकित सहिनाणीजी। वर्तमान चउवीसी जारणो, श्री 'जिनराज' वखारणीजी ||१||इ०॥ जउ मूरति नयणे निरखीजई, जउ हाये पू जीजइजी। जउ रसनाइ गुण गोइजई, नर भव लोहउ लीजइ जी । २।। इ०॥
(पृ० १७) आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का स्तवन करते हुए उनकी बाललीला का जो वर्णन किया गया है उसे पढते समय महाकवि सूर और उसके कृष्ण हठात् स्मरण हो आते है । मरुदेवी के मातृ-हृदय को कविने पहचाना है, बालक ऋषभ की सहजसुलभ क्रीडायो को कविने देखा है, तभी तो जो चित्र बनते हैं वे उभर उभर कर आखो के सामने नाचते रहते हैं
रोम रोम तनु हुलसइ रे, सूरति पर बलि जाउ रे । कवही मोपइ आईयउ रे, हूँ भी मात कहाऊ रे ॥३॥ पगि घूधरडी घमघमइरे, ठमकि ठमकि धरइ पोउ रे । वाह पकरि माता कहई रे, गोदी खेलण पाउरे ॥४॥ चिवुकारइ चिपटी दीयइ रे, हुलरावइ उर लाय रे। बोलइ बोल जु मनमनारे, दतिया दोइ दिखाइ रे ॥१॥ तिलक वरणावइ अपछरा रे, नमयणा अंजन जोइ रे। काजल की विदी दियइरे. दु जन चाखन होइरे ॥६॥ (पृ० ३१)
कवि भावानुकूल भाषा लिखने मे सिद्धहस्त है। 'श्री गिरनार तीर्थ यात्रा स्तवन' को पढते हुए लगता है जैसे यात्रियो का एक दल उमडता हुआ चला जा रहा है। बहिन द्वारा बहिन को
(ल)