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लिखित प्रतियो से वर्षों के परिश्रममे मंगृहीत एवं वर्गीकृत करके यहाँ प्रकाशित की गई है। फुटकर रचनायो की दो स ग्रह प्रतियाँ भी हमे बहुत वर्ष पहले प्राप्त हुई थी जिममे से एक ३४ पत्रो की प्रति यति जयचन्दजी के भ डार मे है और दूसरी श्री पज्यजी के स ग्रह मे। हमारे स ग्रह के कई गुटको एवं फुटकर पत्रो में भी आपकी रचनाए मिली हैं जिनमेसे कुछ पत्र तो आपके उस समयके लिखे हुए है, जिस समय आप प्राचार्य पद पर प्रारूढ नही हुए थे और राजसमुद्र के नाम से प्रसिद्ध थे। ऐसे फुटकर पत्रो मे से एक दो पत्रो के ब्लॉक इस ग्रंथ में दिए जा रहे हैं जिनसे आपके अक्षरों का भी हमे दर्शन हो जाता है ।
आपके कुछ चित्र भी प्राप्त हुए हैं जिनमे से यति मूरजमलजी के संग्रह को शालिभद्र चौपाई की सचित्र प्रति के एक चित्र का ब्लाक हमने अपने 'ऐतिहासिक जैन काव्य स ग्रह' के पृष्ठ १५० में प्रकाशित किया था। सिघोजीके संग्रह की विशिष्ट सचित्र प्रति मे भी आपका चित्र पाया जाता है। यह प्रति आपकी विद्यमानतामे ही चित्रित की गई थी और अवश्य ही इसके चित्रकार शालिवाहन ने आपको देखा होगा इसलिए उसका बनाया हुआ चित्र अधिक प्रामाणिक होने से उसी का ब्लाक इस ग्रंथ मे दिया जा रहा है। शिष्य परम्परा:
आपके शिष्य अनेक थे और उनमे कई बडे अच्छे विद्वान् प्रौर कवि थे। आपके पट्टधर जिनरंगसूरि भी अच्छे कवि.थे। उनके स्तवन सज्झाय, गीत पद की एक संग्रह प्रति बीकानेर सेठिया-लायब री मे प्राप्त है बार कुछ रचनाएं प्रकाशित भी हो चुकी है। आपके द्वितीय पट्टधर जिनरत्नसूरिजीके रचित कुछ स्तवन मिलते हैं। जिनरगसूरिजी से लखनऊ गद्दी हुई और उस परंपरा मे अभीश्री जिनविजयसेन सूरि हैं । जिनरत्नसूजिीकी पट परम्परा बीकानेर मे चली। वर्तमान पट्टधर जिनविजयेन्द्रसरि अच्छे विद्वान हैं । आपके इन दोनों पदृवर शिप्यो के अतिरिक्त कई उपाध्याय ऑदि विद्वान शिष्य थे जिनकी परम्परा में
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