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भद्र गणि ने जेसलमेर में 'धन्नो शालिभद्र चरित्र' नामक महाकाव्य बनाया जो प्रकाशित भी हो चुका है। इसीप्रकार धम कुमार रचित शालिभद्र चरित्र काव्य भी टिप्पणी सहित प्रकाशित हो चुका है। बहुत से रास भी उपलब्ध है जिनमे से जिनविजयकृत धन्नाशालिभद्र रास प्रकाशितहो चुका है । अमोलकऋषि और शकर प्रसाद दीक्षित रचित धन्नाशाभिद्र चरित्र और शालिभद्र चरित्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। अप्रकाशित रीस भी अनेक हैं पर जितनी अधिक प्रसिद्धि जिनराजसूरिजी के प्रस्तुत रास को मिली वैसी अन्य किसी भी रचना को नहीं मिल सकी।
उनके रचित दूसरा राजस्थानी काव्य गजसुकुमाल महामुनि चौपई भी बहुत ही सुन्दर है । इसमे श्री कृष्ण के सगे लघु भ्राता गजसुकुमालका रोमांचकारी पावन चरित्र वर्णित है । गजसुकुमाल का चरित्र अन्तगड दशासूत्रमे पाया जाता है और इस कथा-प्रसंग को लेकर और भी कई कवियोने रास ढाल एव सज्झाए बनाई हैं।
प्रस्तुत ग्रंथ मे सबसे पहले चतुर्विशतिका या चौबीसी नामक रचना छपी है जिसमे २४ तीर्थङ्करो के २४ भक्ति गीत और २५ वा कलश है । तदन तर विहरमानविंशति जिन गीतम्' जिसे 'वीसी' कहते हैं, प्रकाशित की गई है। जैन मान्यता के अनुसार . इस अवसर्पिणी काल के प्रस्तुत जम्बूद्वीप और भरतक्षेत्र के चौबीस तीर्थकर मोक्ष पधार चुके हैं, पर महाविदेह क्षेत्र मे बोस तीर्थकर माज भी विचर रहे हैं। उन्ही बीस तीर्थङ्करो के २० भक्ति गीत और २१ वा कलश प्रस्तुत वीसी नामका रचना में है। दोनो मे रचनाकाल का उल्लेख नहीं किया गया पर इनकी रचना प्राचार्य पद-प्रामि के बाद हुई हैं। और इनकी हस्तलिखित प्रतियाँ स ० १६८३ की लिखी हुई हमारे संग्रह मे है इसलिए सं० ६६७४ और १६८३के बीचमेही चोवीसी और बीसी का रचा जाना निश्चित है इन रचनाओ का भी जैन समाज मे काफी प्रचार रहा अत. इनकी अनेको हस्तलिखित प्रतिया हमारे संग्रह में एव भन्यत्र भी प्राप्त है।
प्रस्तुत ग्रंथ मे प्रकाशित अन्य फुटकर रचनाए अनेक हस्त