SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि प्राज थकी चउथइ वरमि, फागुण सुदि सुमवार । सातमि दिवसइ नलहिसि, भट्टारक पद सार ॥६॥ तिहुँ दिहाड़े थाकते, तई जाण्यउ मिनराज । मरण उ जिनहिससूरि नउ, ए सबल करामति आज || वालपरगइ परिण ताहरउ, पूरयउ परत एमा। थिराद साचोर विषद नुरत, प्रविका रानी टेक 111 राउल भीम समा चढी, जेसलमेरि कहाय । वाद करी हारावियउ, सोमविजय उवज्झाय III गच्छ पहिरायउ, लास छह, पुस्तक सहस छनोस । भडारइ उपवास सय, पांच किया सरीस ॥१८॥ विद्याबलि कीयउ भलउ, सारी सिन्धु विकार । पांच पीर सानिधि करी वरत्यऐ जय जय कार ||११|| श्री सिद्धार्चाल पाठमउ; परतिष्ठयउ उद्धार । अविचल कीघउ प्रापरणउ; नाम सुजस संसार |१२|! जेता ही दिन ताहरा, तेता ही प्रदात । एक जीव हु किम कहु, कहिया जे विख्यात ॥१३॥ वड़भागी महिमानिलउ, सोभागी स्रव जाण । चिरजीवे जिनराज गुरु, उनय करइ जां भाग ॥१४॥ [सर्व गाथा ३४९] ढाल-नवमी राग धन्यासिरी जाति-तीर्थ कर रे चउवीसे मइ संस्तश्यारे एहनी चिर जीवउ रे श्री जिनराजसूरोसरू रे, ____ खरतर गच्छ सिणगार, संघ एदय करू रे ॥१चि०॥ पाटइ रे श्री जिनसिहसूरीस नइ रे, ध्रमती साह मल्हार । कुल वोहिथ भलउ रे सोभागी रे रूपकला गणागलउ रे ॥२चि इहां सवत रे सोलड़ सय इक्यासीयउ रे, जेसलमेर मझार ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy