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जिनराजसूरि कृति कुसुमांजलि
प्राज थकी चउथइ वरमि, फागुण सुदि सुमवार । सातमि दिवसइ नलहिसि, भट्टारक पद सार ॥६॥ तिहुँ दिहाड़े थाकते, तई जाण्यउ मिनराज । मरण उ जिनहिससूरि नउ, ए सबल करामति आज || वालपरगइ परिण ताहरउ, पूरयउ परत एमा। थिराद साचोर विषद नुरत, प्रविका रानी टेक 111 राउल भीम समा चढी, जेसलमेरि कहाय । वाद करी हारावियउ, सोमविजय उवज्झाय III गच्छ पहिरायउ, लास छह, पुस्तक सहस छनोस । भडारइ उपवास सय, पांच किया सरीस ॥१८॥ विद्याबलि कीयउ भलउ, सारी सिन्धु विकार । पांच पीर सानिधि करी वरत्यऐ जय जय कार ||११|| श्री सिद्धार्चाल पाठमउ; परतिष्ठयउ उद्धार । अविचल कीघउ प्रापरणउ; नाम सुजस संसार |१२|! जेता ही दिन ताहरा, तेता ही प्रदात । एक जीव हु किम कहु, कहिया जे विख्यात ॥१३॥ वड़भागी महिमानिलउ, सोभागी स्रव जाण । चिरजीवे जिनराज गुरु, उनय करइ जां भाग ॥१४॥
[सर्व गाथा ३४९] ढाल-नवमी राग धन्यासिरी
जाति-तीर्थ कर रे चउवीसे मइ संस्तश्यारे एहनी चिर जीवउ रे श्री जिनराजसूरोसरू रे,
____ खरतर गच्छ सिणगार, संघ एदय करू रे ॥१चि०॥ पाटइ रे श्री जिनसिहसूरीस नइ रे, ध्रमती साह मल्हार । कुल वोहिथ भलउ रे सोभागी रे रूपकला गणागलउ रे ॥२चि इहां सवत रे सोलड़ सय इक्यासीयउ रे, जेसलमेर मझार ।