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श्री जिनराजसूरि रास
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सबल विछित्ति करो पयसारउ, अरजुन माल्हू राय । दसारणभद्र राजानी परि, बाँदइ सदगुरु पाय ।।४५।। नांदि मडावि चउथ उ व्रत लेई, गुरु मुखि करमसी साह । गाम माहे हवासी लाहे, लीघउ लखमी लाह ।।५।। जेसलमेर चउमास करीनइ, पाली पाटण पावइ । चैत्य प्रतीठ करी रह्या तेहबइ, सघवी भूठइ तेडावइ ।।५६।। नगर सेठ नेतउ साह वांदइ, श्री सघ सुगुरु पाय । पाटरिण नगरि रहया चउमासउ, राजसूरि निर पाय ॥५७॥ अहमदाबाद नउ श्री सघ प्रावी, अाग्रह करी अपार । श्री जिनराज सुगुरु नइ राख्या, चउमासुसुविचार ॥५८॥ पाठक वाचक दीक्षा देई, सगलउ गच्छ सन्तोष।। वस्त्र पात्र अन पान स घाति, साधु पात्र नइ पोषई ।।५९।। चउरासी गछ माहि भट्टारक, को नहीं ताहरइ तोलइ । श्रीजिनराजसूरि चिरजीवे, जयकीरति इम बोलइ ॥६०।।
[सर्व गाथा २३५ ]
॥हा॥ बड वखती बड साख जु, बाध्यउ तुझ परिवार, सीस सवाई ताहरइ, घरणा थया सुखेकार ॥१॥ पाश्वनाथ नी सानिधि, कीधी ए अखियात । घांधणी प्रतिमा तगी वांची लिपि विख्यात ॥२॥ सहगुरु - साधी अबिका, थई कहइ परतक्ष । भट्टारक पद पाँचमइ, वरसइ पामिसि दक्ष ॥३॥ मिल्या जिके कहया अबिका, बीजा बोल पचास । करइ सानिधि गुरु राज नइ, हाजरि रही उल्लास ॥४॥ जयतिहमरण समरपा थकी, महिरूपइ धरमिंद । वोल्यउ थाइसि वच्छ तु खरतर गच्छ मुरिंगद ॥५॥