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श्री जिमराजसूरि रास
पंच महाव्रत भार दुहेलउ, पाचा मेरु समान ॥८॥ भ० ॥ अढार सहस सीलांगरथ जारइ, गुरण मांहे सातवीस । अमम श्रमाय अकिंचरण निरमंद न करइ लोभ न रीस ॥६॥भ० ॥ एक दिवस नी दीक्षा लहियइ, निश्चय देव विमान । जावजीव पालइ जउ चारित, तउ सुख केहइ गान ||१०||४०|| प्रसार ससार जागी जे विरमइ, ते नर कहियइ जारण ।
कटुक विपाक तुच्छ सुख मांहे, मुझि रहइ ते प्रयाण || ११||०|| सध्या समय मिलइ जु रूखे, पंखो सगला आय |
राति रही एकठा परभाते, उडि उडि दइ दिसि जाय ॥ १२ ॥ ० ॥ इम करम तराइ वसि जीव भमीनइ, पामइ कुटंब नउ मेलउ | पांच राति रही कुटव संयोगड,चालइ प्रति इकेलउ || १३|| भ० || घन घन जोवन आउखउ, जाणे नय नउ वेग ।
डाभ अग्रजल चचल जीवित, जारिए धरउ सवेग || १४ || भ० || स्वारथ नउ सहुयइ छइ जगि मइ, स्वारथ विग नहि कोई । इम जारणी नइ करिज्यो संबल, धरम नउ जोई सोई ||१५|| भ० ॥ चिलातीपुत्र अनइ परदेसी, हृढप्रहारी व कचूल ।
इत्यादिक नर तारथा घरमइ, कीधा सुख अनुकूल ||१७|| भ० ॥ कामकुभ चिंतामणि सरिखउ, धरम मुगति दातार । इम जागी नइ धरम करउ जिम, सफल थायई श्रवतार ॥ १७॥ भ० [ सर्व गाथा 80 ]
॥ दूहा ॥
सहगुरु नी वाणी सुरणी, ऊठयउ दघउ दीक्षा मुझ नइ तुम्हे, कुमर वदइ चलता सहगुरु इम भरणइ, मात पिता श्रादेस । लेइ श्रायउ दीजियइ, दीक्षा बिलब' न लेस ॥२॥ - कुमर वदंइ कर जोडिनइ, श्रावी माता पासि । सद्गुरु वदिया धमं सुण्यंउ, माता दयइ साबासि ॥ ३ ॥
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जाणे सीह । रणबीह ॥१॥