SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 292
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ श्री जिमराजसूरि रास पंच महाव्रत भार दुहेलउ, पाचा मेरु समान ॥८॥ भ० ॥ अढार सहस सीलांगरथ जारइ, गुरण मांहे सातवीस । अमम श्रमाय अकिंचरण निरमंद न करइ लोभ न रीस ॥६॥भ० ॥ एक दिवस नी दीक्षा लहियइ, निश्चय देव विमान । जावजीव पालइ जउ चारित, तउ सुख केहइ गान ||१०||४०|| प्रसार ससार जागी जे विरमइ, ते नर कहियइ जारण । कटुक विपाक तुच्छ सुख मांहे, मुझि रहइ ते प्रयाण || ११||०|| सध्या समय मिलइ जु रूखे, पंखो सगला आय | राति रही एकठा परभाते, उडि उडि दइ दिसि जाय ॥ १२ ॥ ० ॥ इम करम तराइ वसि जीव भमीनइ, पामइ कुटंब नउ मेलउ | पांच राति रही कुटव संयोगड,चालइ प्रति इकेलउ || १३|| भ० || घन घन जोवन आउखउ, जाणे नय नउ वेग । डाभ अग्रजल चचल जीवित, जारिए धरउ सवेग || १४ || भ० || स्वारथ नउ सहुयइ छइ जगि मइ, स्वारथ विग नहि कोई । इम जारणी नइ करिज्यो संबल, धरम नउ जोई सोई ||१५|| भ० ॥ चिलातीपुत्र अनइ परदेसी, हृढप्रहारी व कचूल । इत्यादिक नर तारथा घरमइ, कीधा सुख अनुकूल ||१७|| भ० ॥ कामकुभ चिंतामणि सरिखउ, धरम मुगति दातार । इम जागी नइ धरम करउ जिम, सफल थायई श्रवतार ॥ १७॥ भ० [ सर्व गाथा 80 ] ॥ दूहा ॥ सहगुरु नी वाणी सुरणी, ऊठयउ दघउ दीक्षा मुझ नइ तुम्हे, कुमर वदइ चलता सहगुरु इम भरणइ, मात पिता श्रादेस । लेइ श्रायउ दीजियइ, दीक्षा बिलब' न लेस ॥२॥ - कुमर वदंइ कर जोडिनइ, श्रावी माता पासि । सद्गुरु वदिया धमं सुण्यंउ, माता दयइ साबासि ॥ ३ ॥ 1 जाणे सीह । रणबीह ॥१॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy