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जिनराज सूरि कृति कुसुमांजलि
तीर्थ राज गीतम्
परि परि आव्या समरता, ललगा अहो प्यारे आज भलइ सुविहारण कि शेत्र ज भेटीयइ ललगा । श्राज मनोरथ मा फल्या ललरगा ग्रहो प्यारे,
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जीवित जनम प्रमाण कि ||१|| पालीतारणइ देहरा ल• ललितसरोवर पालि कि ॥०॥ पाजइ चढता पादुका ल० प्ररणमु नयरण निहालि कि ||२|| पगि पनि पाप पखालताँ ल० साथइ स घ झकुड कि ॥०॥ भाव भगति धरि भेटीयइ ल० पासनाह कलिकुड कि ||०|०||३|| केसर भरी कचोलड़ी ल० पूजू रिषभ जिरगद कि । गे० रइतिलि पगला भला ल० पेख्या परमारग द कि | | ० || || चउमुख देहरा देहरी ल० पुंडरीक गणधार कि । शे० खरतर वसहो देखताँ ल० सफल करू अवतार कि || - ||५|| मरुदेवा गयवर चढी ल० प्रदबुद त्रिव सरूप कि शे० मन माहरउ मोहीर हथउ ल० देखी रूप अनूप कि ||०|| ६ || मूल टूक ऊपरि छह ल० चउमुख नवल प्रसाद कि || शे० उ चउ शिखर सुहामरणउ ल कइइ सरग सुवाद कि । शे० ॥ ७ ॥ साची शेत्र ज (य) नदी ल०, सिधवड उलखाझोल कि ॥ ० दीठी चेल तेला वडी ल०, प्राजु थयउ रग रोलि कि । शे० |८|| तीरथ जिण भेटघउ नही ल०, ते नर गरभावास कि || शे० 'राजसमुद्र' मुनिवर भरणइ ल०, सफल फली मन ग्रास कि || शे० ॥ ॥ इति तीर्थराज गीतम्
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( पत्र १ तत्कालीन हमारे संग्रह मे )
तीर्थ यात्रा मार्ग निरुपक गीतम
खि भोजिग भाट चारण, गुरिगजरण वीजा वली ! मरुदेवि कुट प्रसाद अनुपम मंडाव्यउ मन नी रली ||१४||