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श्री गजसुकुमाल महामुनि चौपई
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सत्र मित्र ऊपरि सम भावइ, इम हुइ ते सिव पावइ बे सा ॥ त्रिकरण सुद्ध क्षमा गुण धारी, तेह तणो बलिहारी वे ||७||सा०॥ क्रोध थकी दुरगति पामोजइ, क्रोध तिणइ नवि कीजइ बे ||८||सा. क्रोध करम च डाल कहोजइ, चारित तुरत दहीजइ वे ||६||साo|| जागी एम क्षमा नितु धरीयइ, मुगति वधू जिम वरीयइ बे॥१०सा सवत सोलह १६ निन्नाणू १६ वरसइ,
वइसाखइ सुभ हरखइ बे||११||सा०॥ सुदि पंचमी ५ सुभ दिन सुभ वारइ,
एह रच्यउ सुविचारइ बे ।।१२।सा०।। • श्रीजिरसिंघसूरि गुणवारा, खरतरगच्च उदारा बे॥१३।।सा. श्री जिनराज तासु परभावइ,
इरिण विधि मुनि गुण गावइ बे ॥१४॥सा०॥ ए सबध सदा सांभलिस्यइ, तासु मनोरथ फलिस्यइ बे ॥१५||सा०॥ माठमइ अग तणइ अणुसारइ,जोडि रची मति सारइ बे॥१६||सा० कवि कलपना अधिक रची जइ,मिच्छादुक्कड़ दीजइ बे ॥१७॥सा० श्री जिन धरम तणइ परसादइ,
अधिक सदा जस धाधइx बे॥१८॥सा०॥ मगल सुख सोहग+ पामीजइ,जिनवर चरण नमीजइ वे ॥१६सा.
[सर्व गाथा ५६ ] इति श्री गजसुकमाल महामुनि चितुष्पदिका समाप्ता। सर्व ढाल ३०, सर्वइलोक संख्या ८००। श्री रस्तुलेखक वाचकयो। सवत १७४३ वर्षे, फाल्गुन मासे ६ तिथौ गुरुवासरे। श्री जेसलमेरू वास्तव्य सुश्रावक, पुन्य प्रभावक कोठारी। विद्याधर तत्पुत्र कोठारी अमीच द तत्पुत्र कोठारी पविभूषण अभयचदजो पुत्र निर जोवी केसरीचद पठन हेतवे लिखितेय पुस्तिका
*कल्पने, कलिपित x वाध + साता ।