SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ L श्री गजसुकमाल महामुनि चोपई इरिण जाण्यउ संसार, बाजीगर बाजी जिसउ ||४|| एक पखउ हिव नेह, कितलइ काल लगइ करां । तइ तउ दाख्यउ छेड, जारगइ तिम करि नान्हडा ||५|| [ सर्व गाथा ३६३ ] २०३ ढाल - २२ श्री चंद्रप्रभु प्राहुणउ रें- एहनी हरि जंगइ बांधव सुरगड रे, तुझ विरहउ न खमाइ रे । एक घडी पिए दोहिली रे, किम जमवारउ जाइ रे || १ || ह० || वार वार कहता हिवड रे, न रहइ काई सोभ रे । काने झाल्या हाथिया रे, केम रहइ थिर थोभ रे ||२||०|| बलिहारी तुझ बाँधवा रे, दुक्कर करणी कार रे । च्यार महाव्रत पालिवा रे, कठिन श्रछइ निरधार रे ||३||०|| तर म्हमु मन चोरियउ रे, हूउ जावरण हार । जाता नइ मरता थका रे, कहि कुरण राखरण हार रे ||४|| ० || लूखउ छइ मन ताहरउ रे, तिरण नवि लागइ नेह रे । पिरणx म्ह माहे वीचिस्यइ रे, जारगइ करता तेह रे ॥ ५ ॥ ० ॥ पलक माँहि अनिवड हुग्रउ रे, तिरण तुझ नइ साबासि रे । जनम लगइ जाण्यउ हुतउ रे, नवि छोडिसि श्रम्ह पासि रे || ६ || ३० मात पिता बाधव तरणा रे, रह्या मनोरथ माँहि रे । एक सहोदर माहरउ रे, तू हिज साची बाह रे || ७ ||ह० || डोकर परण माता भरणी रे, छडइ छइ तू धीठ रे । सुर सानिवि मुख 'ताहरउ रे, दीठउ थउ तिरिण नीठ रे ||८|| || एक वचन मुझ मानिवउ रे, इण नगरी नउ राज रे । एक दिवस लगि, आदरी रे, पूरवि बंछित काज रे || ६ ||ह० सांभलि अरणबोध्यउ रहयउ रे, कीधउ अ गीकार रे । • दिखाडयो X जे
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy