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________________ श्री गजलुकमाल महामुनि चौपई २०१ दय-दय कार दान पिण दीवा रे, समुद्र लगइ कीरति फल लीधा रे ॥शासु०॥ प्रागलि ऊभी सेवक कोडि रे, ___ जय-जय कार करइ कर जोडि रे ॥६||मु०॥ देव विमान सरिस आवासा रे, हरषित हास विनोद विलासा रे ॥७।मु०॥ सुहणा माहे पिण दुख नाया रे, पूरव सुकृत तणा फल पाया रे ॥८॥०॥ तुझ परसाद न को मुझ साकउ रे, वाल करी न सकइ कोई वाकउ रे ।मु०॥ यादव नउ परिवार जु* जोरइ रे, तीन खड सामी तुझर तोरइ रे ॥१०॥सु०॥ तिरिण कुन माहे लहि अवतारा रे, पूर मनोरथ मनना सारा रे ||११||सु०॥ हिव जाणु प्रापरणपउ तारू रे, - विषय विलास थकी मन वारू रे ॥१२||सु०॥ कृष्ण कहइ साँभलि लघु भाई रे, व्रतनी मनसा किम तुझ आई रे ॥१शासु०॥ सोल सहस नरपति मुझ+ केडइ रे, थूक पडइ तिहा लोई रेडइ रे ॥१४॥सु०॥ पारण जिको तुम्हची नवि मानइ रे, तुरत करू हू तिण नइ कानइ रे ॥१५॥सु०॥ तुझ भत्रीजा अछइ अनाडी रे, किरणहीक ठाम मिल्या वन वाडी रे ॥१६||सु०॥ *मझ जोरै रे तू सवल तोरै रे + तुझ
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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