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________________ श्री गजसुकुमान महामुनि चौपई १८७ तेह तणी सोमा नामइ सुता हो, रूपइ साची रभ । मनमिष नयण नही त्रिण लोक मइ हो, अधिकउ करइ अचभ ||शासोगा जिण मुख कतई जीतउ चद्रमा हो, विलखउ थयउ विच्छाय । अधिकउ ओछउ एक रूखउ नही हो, माहि कलक कहाय ॥४॥सो० हरिणी जीती नयण गुणे करी हो, ते सेवइ वनवास । प्रापणनी अधिकाइ वाछती हो, सहइ भूख सी ष्यास |शासो०॥ वाणी आगइ साकर हारि नइ हो, तृण सग्रहइ सदीव । कंठ सोभ करि संख पराभव्यउ हो, अह निसि पाडइ रीव ॥६॥सो० अग उपग तरणी सोभा धरणी हो, कहताँ नावइ पार । सुभ निरमाण करम स्यु नवि करइ हो, पुण्य तणइ विसतार ॥७॥सो०॥ ते कन्या किराहीक अवसर करइ हो, मज्जन सुचि जल सग। पहिरि वस्त्र अमोलिक अतिभला हो, ओपइ जे निज अंग घासो तिलक हार कु डल वलि बहिरखा हो, ककरण बाजूबंध ।। प्रति सोहइ-अंगुलियइ मुद्रिका हो सोवन मरिण सबध सो॥ कटि तट लटकती कटि मेखला हो, चरणे नेउर नाद । मंग भनइ आभरण विचरता हो, सोभा वादोवाद ॥१०॥सो०॥ इम सिणगार करी दासी तरणइ हो, परवारइ मन मेलि। राज मागि आवइ गति माल्हती हो,करिवा उत्तम केलि ||११||सो०॥ विच मइ मू को सोवन नउ दडउ हो, रमति निज मन रंगि। जन जारगई रूपइ रति ए सही हो, सुकृतइ लहीयइ सग ॥१२॥सो० सर्व गाथा २४६ ॥दूहा ॥ इण विधि कन्या क्रीडती, जे जे देखई तेह । जागइ रूप नवउ नवउ, खिरण खिरण वधतइ नेह ॥१॥ हिव सुणिज्यो मन भाव सू, हरि बधव संबध ।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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