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________________ शालिभद्र धन्ना चौपाई ढाट-२६. राग-धन्यासी इण अवसर श्रेणिक परचावै, भद्रा फिरि घर पावै जी।। पडलाभी न सकी प्रस्तावै, तिण गाढी पछतावे जी ॥१॥ सालिभद्र धन्नउ रिषिरोया, तासु नमु नित पाया जी। जे तप जप खप कसि करि काया, सूवा साधु कहाया जी ॥२॥सा०॥ नान्हा मोटा दूषण टाली, कलमल पक पखाली जी। चरम समय जिरावर सभाली,सूधो अगसण पाली जी ॥शासा०॥ बार वरस सजम पाराधी, आप सवारथ साधी जी। सुरगति करम निकाचित बाधी,सरवारथ सिद्धि लाधीजी ॥४॥सा० सुर सारै सुर भवन विचाल, पिरण नवि नाथ निहाले जी। पोता नो वोल्यो संभाले, हरखित हुवै तिरण काले जी ॥शासा०॥ सरवारथ सिद्ध हुती चविस्यै, मुनिवर नर भव लहिस्य जी। महाविदेहे व्रत आदरिस्यै, अविचल शिवसुख लहिस्य जी।६सा०॥ परतखि दान-तणा फल जारणी, भाव अधिक मन प्राणी जी। भढलक दान समापो प्राणी, ए श्री जिनवर वाणी जी ॥७॥सा०॥ साधु चरित कहिवा मन तरसे, तिण ए भास्यौ हरस जी। सोलह सइ अठहत्तरि (१६७८) वरसै,आसू बदि छठि दिवसे जी। सा० श्री 'जिनसिंहसूरि' सीस मतिसार, भवियण नै उपगारे जी। श्री 'जिनराज' बचन अनुसार, चरित कयौ सुविचार जी । सा०॥ इणि परि साधु तरणा गुण गावै, जे भवियरण मन भावै जी। अलिय विधन सवि दूर पुलावे, मन वछित फल पावै जी ।१०सा. एह सबध भविक जे भरणस्यै, एक मना सांभलिस्य जी। दुख दोहग ते दूरइ गमस्यै,मन वंछित फल लहिस्य जी ॥११॥सां०॥ इति श्री दान विषये शालिभद्र धन्ना चौपई मंपूर्णम्
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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