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जिनराज सूरि-कृति - कुसुमांजलि
तीजं दिन तीजी आई, ताली देई तास बोलाई । छोडी दीसं छे कतं, श्रावी वेसो इरण पते ||१२|| वोल कहती ग्रह माहे, तुझ नै पिरण काढी साहे । स्यो फेर जवाब न कीधो, त्रिहु पाने वीड़ो दीधो || ३ || परठ दीठी प्राजूअउ नी, गति थास्यै एक सहूनी । जे पाचे साही आवे, प्राधो दुख तास जरगावै ॥ १४ ॥ ॥ दूहा ॥ स्याने को केहने हसो, मत को करो गुमान । वारु वासो जिम हुतो, तिम थास्यै प्रपमान ||१५||
ढाल यतनी
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तो आसगा मार्च, झगडो करती प्रियु साथै । पिरण मुझ नै छेह न देतो, अवगुरण पिरण गुरणकरि लेतो ||१६|| तेही जो हुवइ निसनेही, तो वात कहीजै केही । त्रीजी बैठी बिहु पार्स, इरण परि सिर घूरणी विमासे ||१७|| देखो छो वात जि काई, मन माहे ईयार आई । निरदोष पराई जाई, ले नाखउ छउ धसकाई ||१८|| प्रहसम थास्यै मुझ वारी, इम चितवे चउथी नारी । श्राडो तब कोई न आसे, मन जाइ लागो श्राकासे ||१६||
॥ दूहा ||
हूं जोई परणी हती, स्युं मुझ ने वैसारिणस्ये, प्रीतम तेहनी
खरी आणि मन
घडीयाले
बाजे घड़ी, धूजरण
मुझ नै पिरण प्रीयु छोडसी, पहुरै वात न का पूछी सकी, आडी
खति । पति ॥२०॥
लागी देह ।
चिहुर छेह ॥ २१ ॥ भाई लाज ।
पहर चिह्न रे आतरे, वीछडिवो छे श्राज ॥२२॥ ॥ यति ॥
(
अति आतुर नेह गहली, घर ऊपर चढी इकेली । हरिणांकी वहि ए जारी, मृगराज लिख्यो चिहुं
पासे ||२३||