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शालिभद्र धन्ना चौपाई
ढाल - १७ राग सोरठ,
व्रत नी मनसा जे आरणी, तिरण माहि न पैसे पारणी । तिरण दिन दस ग्रागे पाछे, मैं सजम लेवो आछे ॥१॥ रहता वैराग न छोजे, माता पिरण सतोषीजे । हठ झालिने वैसि रहीजें, जिम तिम निज कारिज कीजै ॥२॥ श्रवसर लहि चतुर न चूके, लीधो पिग बोल न मू के । हठ छोडि चढयौ चोवार, माता हरखी तिरण वारे ||३|| ॥ दूहा ॥
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भलो थयो दिन दस गूगो बेटो बाप ने,
रहयो लाज रखी चिहु साखि । बाप कहें ते लाख ||४|| यति -
॥४॥
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जेहनी मीजी भेदारणी, पलटे किस तेहनी वारणी । लागो जी रग मजीठो, दीठो ते किरणही न फीटो ||५|| ॥ दूहा
जिम जिम में परणी हती, तिम तिम छोडु एह । परठि तिका माडी तिरण, पहली लाधौ छेह ॥ ६ ॥ गुनहो जिको सो में कियो, फल पिरण लाधो तास । सइये पान जिम हु तजी, अवर रही प्रीउ पास ||७|| स्यौ पहिली परणी हुती, पहली छोडरण काज 1 ऐ ऐ मो मोभरण तरणी, वारु राखी लाज 11511 ढाल यतनी
बीजे दिन बीजी छोडी, पहली चिते थई जोडी । मुझने आधो दुख थास्यै, बिहु ने तो वाटो, श्रास्ये ॥६॥ रहिवो चित्रसाली माहे, भामरिण बैसं बिहू वाहे । किरणही सु नेह न लावै, बाते सहुने परचावै ॥१०॥ मुनिवर ना पिरण मन चूके, कामरण जो पादूकें । पर सालिकुमर ए जागी माची दुरगति सहिनारी ॥ ११ ॥