________________
'शालिभद्र धन्ना चौपाई
१३५
1
।
श्राऊ कार न मंदिर श्रावतां जाता न कहे जाउ । जोगीसर जिम लय लायि रहयो, मूकी मूल सुभाउ ॥ २० ॥ कर जोडि श्रागलि ऊभा छता च्यार पहुर वहि जाइ । तो पिर किम ऊभा जास्यो किहाँ, वात न पूछै काइ || ३ | | ० || arरण नयण पोता ना वसि कीया, कीधो मन सकोच । रंग तरणा रटका मत जाणेज्यो, आछे अवर आलोच ||४|| प्र० श्रापण भोगी भमर न दूहव्यो, केम पडी मन राई । बोलायो प्रीतम बोले नहीं, अंतरगति न लखाई ||५|| प्रा० ॥ देखी ने मुंह मचकोडे नही, रीस नही तिल श्रापण पिरग बोले नही, एह अनेरी धात श्राज सही भंभेरथो वालहो, न कहै मन नी वात । जे नितु नवलो नेह न साँसहे ते तो घाले घात ||७|| प्रा० ॥ कहिये नाह न दीठो रूस, दिन दिन वधते प्रेम । पांरणी वलि माँहे मन खाँचीयो, हिव कहो कीजे केम ॥८॥ ० ॥ अतरजामी आज अवारणगू, दीसे कवरण विशेष । श्रलवि मोह मीट न मेलतो, जे जोतो अनिमेष | | | | | ०।। मीठा बोल म बोलो वालहा, मूल म पूरो खत 1. जोवो सहज सलुणे लोयणे, तो भाजै मन भ्रत ॥ १० ॥ ० ॥
मात ।
॥६॥०॥
॥ दूहा ॥ प्रसरण पूरी साधु जिम, बैठो ताली लाइ ।
आज जब गति वालहो, किराहिं न लख्यो जाइ ॥१॥ जो मन का सल राखिये, तो वाघ विखवाद | छतै साल किम नीपजे, प्रेम रूप प्रासाद ||२|| अबोल्यां सरिस्यै नही, वाधो विरह अगाध | कीजें पूछ 'खरी खबर, कवरण कीयो अपराध ॥३॥ वेकर जोडी पूछिये, कामरण गारो कत । किरण कारण ए रूसरणी, ते दाखो विरतत ||४||