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________________ १३४ जिनराज सूरि कृति कुसुमांत्रि देखी डोली तांम रिणक प्रागुली जाण्यो गाडी मुद्रडी ए । दासी ने कर सैन जल कल चालवी कढावे भद्रा खडी ए आशा अवारे उद्योत करता नव नव भूपण मणि रयणे जडया ए । देई कि यदि ज्योति भिगामिग देखि सवि चरिज पडना ए|६ चितामणि ने पासि जिम सेवतरो मूक्यो सोभ जिसी लहे ए । तिम ते भूषण पास श्ररिगक मुद्रडी ततत्रिरण श्रोलखी ने ग्रहे ए ॥७ चीते मगधाधीश पुण्य पटंतर स्यो सेवक ने स्यो धरणी ए । स्यो करिवो विषवाद देखी परधन घाटि कमाई प्रापणी ए ||८|| पप हिरैहिलं दीस भूषरण भामिरण वीजइ दिनते ऊतर ए । जिम निरमाइल फुल तिम ए नाखीए वलती सारन को करें ए ॥ ६ ॥ मेवा ने पकवान प्रीसे व्यजन जाति भाति कर जूजुश्रा ए । ताजा तवोल ऊपर नव नव सहु को मन हरपित थया ए ॥१०॥ af मारगकनी कोडि लेई भेटरगो राजा फिरि पाछउ गयो ए । हिव पाछलि जिनराज धरम कररण भरणी सालिकुमर उच्छक थयोए ।। ११ ॥ दहा ॥ तेजी सहे न ताजरगो खेत सहै खग धार । सूर मररण ही साँस हैं, परिण न सहै तू कार ॥१॥ से वसि राकपरणउ भलो, स्यो परवसि रग रोल । वर पोता नी पातली, नाउ परायो घोल ॥२॥ बीजो नाथ न साँसहु, तो मानी सरभ न साँस है, घन गर्जारव जेम | ३ || सजम लेता दोइ गुरण, पर भव अविचल राज । इग भवि नाथ न को हुवै, एक पथ दोइ काज ||४|| करता एम विचारण, वोली घडी विच्यार | मिलि बत्रोसे भामिनी, इरिण परि करें विचार ||५|| ढाल ११ नीवयारी जाति ' प्रारण धरू सिर केम । आज नहेजो रे दीसे नाहलो, कीजे कवरण प्रकार । प्रेम विलुत्री सुकुलिरगो मिली, इरिण परि करें विचार || १ |श्रा०
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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