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________________ शालिभद्र धन्ना चौपाई १३१ रमरिण बत्रीसे परिहरो, सेझ तजो इणि वारि । श्रेणिक घर आव्यो अछ, करिवो कवरण विचारि ॥शव०॥ पहला कदेय न पूछता, स्यो पूछो इण वार । जिम जारयो तिम मोलवी, ले नाखो भडार ॥३॥०॥ नाखरण जोगो ए नही, त्रिभुवन माहि अमोल । तो हिव जिम तिम सग्रहो, मुह माग्यो दयो मोल ॥४॥०॥ किरियारणो श्रेणिक नही, बोलो बोल विचार । देस मगध नो छै धणी, इद्र तरणे अणुहार ||शावे॥ जेहनी छत्र छाया वसां, जासु अखंडित पारण। ते घरि आयो प्रापणे, जीवत जन्म प्रमाण ॥६॥०॥ प्रेम मगन रमणी रस, रमतो नव नव रग । सेझ थकी तिण ऊठतो, पालस आणे अग ॥७॥०॥ प्रापण सरिखा जेहनै, लखमीधर लख कोडि । प्रागलि ऊभा अोलगै, रातिदिवस कर जोडि ॥८॥०॥ ए मदिर ए मालिया, ए सुख सेज विलास । ता लगि प्रोपरिण वसि अछ, जो लगि सुनिजर तास ॥०॥ जो आपण पर तेहनी, कहिये कुनिजर होइ । तो खिरण माहे आथ नो, न थ हुये कुज कोइ ॥१०॥०॥ तुरत करै अपराजियो, तुरत लगावै लीक । हियडो कोइ न लखि सके, पाणी मांहि मधीक ॥११शवि०॥ आस ईयारी की जीयइ, पिण केहवो अाँसंग । दुबल काना राजवी, ते हवे किम इकरंग ॥ १२॥ वे०। हास विनोद विलास जे, संपजस्ये सो वार । पिण रीझवता राजवी, खरे कठिन विवहार ॥१३॥वे० दूहा ।। पहला कदे न सांभल्यो, सुपनातरि परिण जेह । बयरण विषम विष सारिखो, मात सुरणान्या तेह ॥१॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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