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________________ १२४ जिनराजमरि-कृति-कुसुमांजलि जीवदया प्रतिपालिय कीजीये पर उपगार रे । साहमी सुगुरु मतोपीये, दीजीये दान अपार रे ॥॥दा०॥ इम मन राज मोजा दिये, ते तो गर्भ प्रभाव रे। तिल तणो तेल जे मह महै, तेतो कुसम सभाव रे ||७|दा०॥ सेठ गोभद्र भद्रा तणी, विलखो मुख देख रे । जे मन दोहला ऊपज, पूरवे ते सुविशेष रे ||बाद०॥ इक दिन प्रावि दासी कहै, फल्या वछित काज रे। दाजीये सेठ वधामरणी, जायो पुत्र सिरताज रे ॥६॥दा०॥ दूरी कीवो दासी-परणो, जलस्यु सिर धोय रे । अगना अाभरण आपी नै, राखी चौगुणी सोय रे ॥१० दा०॥ घरि घरि रग वधामणा, थयो जय जय कार रे । सालिभद्र नाम दीधो इसो, करिय सुपन विचार रे ॥११॥दा०॥ मात भद्रा हुलरावती, दीये एम पासीस रे । चिरजीवे तु नान्हडा, कोडाकोड वरीस रे ॥१२॥दा०। तृझ इडा पीडा पडो, खारे समुद्र जाय । तुझ हुँती अलगी रहो, पूत अलाय वलाय ॥१३॥ हु वड जेम साखे- करी, वाल्हा वीस्तरी जेह रे। पूत सकल परिवार नै, लीधा निरवह जेह रे ॥१४॥दा०॥ हु तुझ ऊपर वारणे, कीधी वार हजार रे । साहिव जेम दिखावज्यो, एहनी दूरी वार रे ॥१५।।दा०॥ ॥हा॥ हिव सुकलीणी सामठी, नारी बतीस नीहारि । परगावी एकरण समै, भोग समत्य विचारि ॥१॥ हिव हु सयम आदरं, भव जल निधि वोहित्थ । सकज सुत जे घर रहै, तासु जनम अकथ ॥२॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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