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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
उवे उठि चलइ भर दरीयइ री,
कइसइ करि वांह पकरीयइ री॥प०॥ जउ पइ अ चुर गहि लरीयइ री,
तउ चिह मइ लाजुमरीयइ री ॥३॥१०॥ काहू कउ चीत न हरीयइ री,
तउ काहइ परवसि परीयड रो॥धाप०॥ 'जिनराज' वचन चित धरीयइ री,
तउ प्रेम कइ पथ न खरीयइ रो ॥५॥१०॥
___ आत्म शिक्षा भ्रम भूलउ ता बहुतेरउ रे,
न कीयउ जां मेरउ मेरउ रे ॥भ्र०॥१॥ ज्ञानी गरु जान बतावइ रे,मेरउ मेरउ मोहि भावइ रे ॥२भ्र० करि प्राणी दूध नवरेउ रे, मेरउहोइ हइ क्यु तेरउ रे ॥ध्र०३ मेरउ मेरउ जउ कहिह रे,हेलइ भवसायर तरिह रे।।भ्र०४ मेरउ छइ धरम सखाई रे,सो करि 'जिनराज' सदाई रे ॥भ्र०५
परमार्थ-साधन जकड़ी गीत
राग-गोड़ी - रे जीउ आपणपउ अब सोच । क्या खायउ अरु क्या जु कमायउ,
करि किछु इहु आलोच ।।१।१०।। योवन मद मातइ तइ कीने, कुण कुण करम असोच । कपटी सुकृत करण की वरीया, आण्यउ मन संकोच ॥मे०२।।