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________________ १०० जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि उवे उठि चलइ भर दरीयइ री, कइसइ करि वांह पकरीयइ री॥प०॥ जउ पइ अ चुर गहि लरीयइ री, तउ चिह मइ लाजुमरीयइ री ॥३॥१०॥ काहू कउ चीत न हरीयइ री, तउ काहइ परवसि परीयड रो॥धाप०॥ 'जिनराज' वचन चित धरीयइ री, तउ प्रेम कइ पथ न खरीयइ रो ॥५॥१०॥ ___ आत्म शिक्षा भ्रम भूलउ ता बहुतेरउ रे, न कीयउ जां मेरउ मेरउ रे ॥भ्र०॥१॥ ज्ञानी गरु जान बतावइ रे,मेरउ मेरउ मोहि भावइ रे ॥२भ्र० करि प्राणी दूध नवरेउ रे, मेरउहोइ हइ क्यु तेरउ रे ॥ध्र०३ मेरउ मेरउ जउ कहिह रे,हेलइ भवसायर तरिह रे।।भ्र०४ मेरउ छइ धरम सखाई रे,सो करि 'जिनराज' सदाई रे ॥भ्र०५ परमार्थ-साधन जकड़ी गीत राग-गोड़ी - रे जीउ आपणपउ अब सोच । क्या खायउ अरु क्या जु कमायउ, करि किछु इहु आलोच ।।१।१०।। योवन मद मातइ तइ कीने, कुण कुण करम असोच । कपटी सुकृत करण की वरीया, आण्यउ मन संकोच ॥मे०२।।
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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