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आत्म प्रीतम गीत
छिणु छिणु घटत अवधि बूझी नही,
प्रेम सुधारस भीनउ ।हमा०॥२॥ दुनिया देखि चिहरवाजी सी, तउ भी प्रिउ न पतीनउ । श्री 'जिनराज' वदन अउचित मइ,
संबल साथ न लीनउ ॥हमा०॥३॥
आत्म प्रीतम गीत यब तुम्ह ल्यावउ माई री तुम्ह ल्याउ,
मेरो नाह मनाइ कइ ल्याउ । दरि दउरि तुम्ह पाइ परत हुँ,
। मइं हठ छारथउ री प्रेम बणाइ ॥१॥ देखउ तड उण की चतुराई, छार चलत हइ नेह लगाई । कहा करू पीहर मइ बइठी, अइसइ री मो दिन जाइ ।।२।। जउ नायउ तउ मौन पकरि करि, सगि चलू गी गीत गवाई। 'राजसूरि' भणि अलख सरूपी,
आवइ जावइ री आप सभाई ॥३॥ आत्मा-देह सम्बन्ध
राग-गउडी-केदारउ, विहागडी विदेशी मेरे आइ रहे घर' माहि । - ना जाणु कब गवण करइंगे २,
मोहि भरोसउ नांहि ॥वि०॥१॥ मोपइ मोहन मंत्र नही किछु, राखु पकरि करि बाहि ।
१. गृह २- करेसी ३- गहि