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जिनराजसूरि कृति कुसुमांजत्ति
'महावीर' ल्यइ आम, अभिग्रह आरू रे । माता पिता जीवता, हु व्रत नादरु रे ॥कि० || ३ || चउनाणी 'गोयम', गणधर धरणी ढलइ रे कि धर०। बालकनी पर वीर विओगइ विल विलइ रे वी० ॥ 'सज्जभव सरिखा पिण, इण मोहइ नड्या रे इ० | 'मनक' तणइ विउग, नयन आंसू पडया रे ॥०॥४॥ शिवगामी पिण 'राम', छमास विकल रहाउ रे छ० । 'लखमरण' तर उ करक, लेई खाधर वहयउ रे ले ० || मात वचन जजोरे, सुत सूतउ कस्यउ रे मु० । बार वरस गृहवास, फिरी 'आद्रन वस्यउ रे || फि०||५|| 'अरहन्नक' नइ नेह, जरगणि परवसि पडी रे ज०। घरि घरि पूछइ जाइ, घरणु ं इक आरडी रे घ० ॥ किहां माहरउ अरहन्नउ, दीठ कहउ ल्याउं जई रे क०१ भमती गलिया माहि, खरी गहिली थई रे ॥ ६ ॥ इद नारद फरिंगद, विद्याधर मानवी रे वि० । विनss सहु नइ मोह, करी परि नव नवी रे क० । पोतइ वीतग वात कि, मन माहे धरी रे कि म० । इम जंपइ 'जिनराज' प्रगट वचने करी रे ॥ प्र० ||७||
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वैराग्य गीत राग- गउडी
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सुख लोभी प्राणी साभलउ जी, सीख सगुरु की सार । वरजउ विषय विकार, लेजो संजम सार ॥ १ ॥सु०॥ लाधउ आरिजस मरणूअ भव, लाधउ गुरु संजोग । छारित नाही काहइ मूरिख, मधुबिन्दु सम ए भोग ||२||सु०