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गुणस्थान गभित पाश्र्वनाथ स्तवन
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बीय तीय चउथइ तिम पचमि एह विचार ॥ एह विचार करीजइ अनुक्रमि ए चउपयडि विनास । पुरुष वेय तिम तिग सजलनउ वधतइ झाण विलास ।। हिव दसमइ थानकइ भणइ सविस्तर पयडि जिनराज । नवि बबइ सजलनउ लोह जे कम्म माहि सिरताज ॥१६॥ एगारमि बारमि तेरमि साय संयोग ।। थायइ इहा निसचय सोलस पयडि वियोग ।। जस नाम वली पण अंतराय शुभ गोय। चउ सण ना करणी पण संजोय ।। जोग रहित तिम कम्म अबधक ए चवदम गुणठाण । भासइ इम भगवंत भविक नइ केवलनाण प्रमाण ॥ बध विहाण रहित हुइ जिणवर पाम्यउ शिवपुर वास । आप सरीखउ करिज्यो जिणवर ए सेवक अरदास ॥१७॥ तुह सण विगु जिण निगम्यउ काल अनंत । पहिलइ गण ठाणइ वट्ट तइ भगवत ।। हिव सुकृत सयोगइ लद्धउ मइ जग भाण । हरे हर सेवा करिवा इण भवि पच्चखाण । • पचखाण सहित तुह दसण लद्धउ सुरतरु कंद। निरतिचार पलइ तिम करिज्यो नत नर सुरपति वृद ॥ तू तिहुयण नायक तारक तूसयल जंतु आधार। आससेन कुल कमल दिवाकर मुगति रमणि भरतार ।।१८।।
। कलश इय बाण रस ससिकला (१६६५) वछर,सह किसण नवमी दिने