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नरेश्वर वर्णन (१) समुद्रनी परि लक्ष्मीनिधान, सहिजि ही सावधान । मेरुनी परि सर्व जनाष्टभ, आति निर्दभ । कार्तिकेय नी परि अप्रतिहत शक्ति, देव गुरु नइ विषइ निविड भक्ति । आसमुद्रान्त भूमंडल भर्ता, आश्चर्यमय महा कार्य कर्ता । सूर्य नी परि नित्योदय, सत्पात्र कृत संचय । दिग्गज नी परि अनवरत दानाद्री' । कृत करु, जय श्री वस। ईश्वर नी परि जितमन्मथु, प्रजापति वकटित सत्पथु । मित्रं प्रति, उदयशेल अति | सशील, सलील । विक्रमाक्रान्त भूतलु, अतिहि प्रबलु । .. रूपइ अभिनव कंदर्पावतार, अति सुविचार । यशस्वी", तेजस्वी। प्रतापि लंकेश्वर, एव विध नरेश्वरु ।। १ ॥ जिणइ राजायइ गौड़ देश नउ रोउ गाजिउ, भोट नू' माछिः । पंचाल नउ पालउ पुलइ, कानड देश नउ कोठारि रुलइ । हूंढाडि नउ ढोयणउ टोयई, वावर देश रउ वारि बइठउ टगमग जोयइ । चौड नउ त्रापिउ', काश्मीर नउ थरहर कापिउ । सोरठी (य) उ सेवइ, दसउर नउ दड देवइ । मेवाड नउ माल यापइ, काछ नउ कापइ । अग देश नउ अग अोलगड, जालधर नउ जीवितव्य तणइ कारणि° रिगइ
१ दिग्गज नी परि निरतर, दानाद्रीकर • प्रगटित ३ मित्र प्रति उदयशील, शत्रुहृद्रय सील। ४-सीकर चोर अ धार (विशेष पक्ति) ५ जयस्वी ६ सार्वभौम नरेश्वर (विशेष पक्ति) ७,भज्यउ ८ चाप्यउ ६ काजि १० वयरीया कृतात, मेवका परम सात। काल वाच निकलक, नी नी परि निन्मक (विशेषपक्ति)