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( २८ ) हरिकंता, हरसलिला, यमुना, मही, तापी, बनास, गंभीरी, चाबिल, कृतमाल, नकामाल, प्रमुख, चौटलाख, छप्पन हजार नदी, लवण समुद्र माहि भिलै । (स० ३)
६४ नदी-वर्णन (१) नदी, दो तह पाड़ती, कचवर उपाडती । रुखउन्मूलती, कुमिणि घालती। सावन हणती, जडी मूली खणती । माग्र्गलोक खलती, वलणि वलती। तरू तोपती, नीचउ जोअती। महापूरि कलकलती, कल्लोलि उछलती । लहरि करी सू सूती, वाहले फूफूती । जिसी कृतांत तणी मूर्ति तिसी रौद्र, वेउतटलेई श्रावी नटी । ( स० १)
६५ समद्र-वर्णन समुद्र उच्छल दूहुल कल्लोलमाला मालित गगन मंडलु । मत्स्य कच्छप कमठ कूर्म नक्र चक्र पाठीन पीठ जलचर सकुल । अतिशय गंभीर, समुदंड नीर डिंडीर । अनेक तायात्रिक लोक सेवित, सोल नाति रत्ननउ अागर एवं विध अपार सागर । (स० १ और स० ५)
६६ समुद्र-वर्णन (२) समुद्र अगाध, अलब्ध मध, गुहिर गभीर, आवर्त दुर्ग, कुतीर्थ विषम, मकर भयंकर।
(पु० अ०)
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