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पथ के छात्रों के सामने मध्यदेश का वर्णन सुनाया वैसे वैसे दक्षिण, के वे सब छात्र मध्य देश चलने के लिए उत्कठित होते गए । वर्णक के अर्थ में वर्ण शब्द का यह प्रयोग तेरहवीं शती के सगीतरत्नाकर नामक ग्रथ में भी पाया जाता है। उसमें 'वर्ण कवि' का उल्लेख है जिसका अर्थ टीकाकार कल्लिनाथ ने 'वर्णना कवि' किया है । शाङ्गदेव की सम्मति में वस्तु कवि श्रेष्ठ और वर्ण कवि मध्यम माना जाता था ( वरो वस्तुकविवर्णकविर्मध्यम उच्यते, सगीत रत्नाकर भाग १ पृ० २४५ )। यह स्पष्ट है कि तेरहवी, शती के आसपास के भारतीय साहित्य में प्रायः सभी क्षेत्रीय भाषाओं में वर्ण कवियों की धूम थी। उसी का एक रूप अवहट्ट के सदेशरासक और विद्यापति की कीर्तिलता में प्राप्त होता है। दोनों के वर्णन वर्णक शैली के हैं, यद्यपि शब्दावली की दृष्टि से उनमें अपनी ताजगी भी पाई जाती है । कवि शेखराचार्य ज्योतिरीश्वर ठक्कुर ( १४ वीं शती का प्रथम भाग ) कृत प्राचीन मैथिली भाषा के वर्णरत्नाकर नामक ग्रन्थ में वर्ण शब्द वर्णन, वर्णना या वर्णक के अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। श्री सुनीतिकुमार चटर्जी ने ज्योतिरीश्वर के ग्रन्थ का सम्पाटन किया है। वह अन्य इस प्रकार के साहित्य में शिरोमणि कहा जा सकता है। उसमें लगभग साढे ६ हजार शब्द हैं जो सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यन्त मूल्यवान हैं और मध्यकालीन भारतीय संस्कृति का, विशेषतः तुर्क युग में राजा और प्रजा की रहन-सहन का भरापूरा चित्र उपस्थित करते हैं । उस अन्य की सामग्री पर आश्रित एक बडे शोध निबन्ध की आवश्यकता है । वस्तुतः समग्र भारतीय वर्णक साहित्य की सामग्री को लक्ष्य में रखते हुए यदि अनुसंधान कार्य किया जाय तो कोश निर्माण और सास्कृतिक परिचय दोनों के लिये बहुत लाभ हो सकता है।
प्राचीनकाल से ही साहित्यकारों ने परिनिष्ठित वर्णकों को अपना उपजीव्य बना लिया था, जैसा वाण कृत हर्षचरित और कादम्बरी से प्रकट होता है । जंगल या बागबगीचों के वर्णन के लिये वृक्ष और पुष्प पक्षी आदि की नगभग एक सी ही घिसी-पिटी सूचियाँ काम में लाई जाती यीं। उद्यान-क्रीडा और सलिल-क्रीडा, वोड़े और हाथियों के भेद और उनकी चालों के भेदों के वर्णन का भी एक परिनिष्ठित रूप प्राप्त होता है। पर अच्छे कवियो की उन्मुक्त कल्पना के लिये हमेशा ही मौलिकता का अवसर रहता था। हमारा अनुमान है कि अन्य भाषाओ का मध्यकालीन साहित्य भी वर्णक शैली से प्रभावित हुआ था। गुजराती भाषा के मामेरु काव्यों में दान दहेज में दिये जाने वाले वस्त्र और सामान की यथासंभव विशद सूचिया समाविष्ट की गई । प्रेमानन्द कृत मामेरू मे इसकी छाप स्पष्ट है । जायसी के