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प्रधान प्राकारि करी परिकलित, निहा- बसइ लोक सम्मिलित । वापी कूप तटाक पारामि करी अति शोभित, पर दलि करि अक्षोभित । धनद यक्षानुकारिए व्यवहारिये करी शोभायमान । स्वस्व क्रिया सावधान, · जन वसइ प्रधान' । । । कीजइ पडदर्शन विचार, परमार्थि यात्मजान अधिकार । चिहुँ टिसि च्यारि प्रतोलीद्धार, अनिवार, “सत्रागार । अति प्रधान, स्वर्ग समान । ठामि ठामि फूल पगर, इस्यउरे उजयनी नाम नगर । सू०
कुरालधीर संकलित 'सभा क्रुतुहल' में परिवद्धित पाठद्वादश तूर्य निघोंप पडित वइ सुजाण वह कोष । धनधान्य समृद्ध, त्रिभुवन मइ प्रसिद्ध । . आराम जलाश्रयादि रम्य, परचक्र अगम्य ।। अनेक देवकुल सकुल, नाचइ रगइ प्रमादाकुल । मेदनी शृंगार, वसइ वर्ण अढार । अति ऊचा आवास, पूजइ सहु आस । चसइ जिहा पडित, हट्ट श्रेणि मडित । जिहा भोगी करइ रेवाडी, इसी विशाल वाडी। जिहा पढइ छात्र चउसाल, तिहा इसी अनेक लेसाल । अति डूडी धर्मसाल, नगर नइ बिचाल । , बखाणइ आवइ गुरु समीपइ बाल - गोपाल । मधुर वाणीयइ पद गुरु धरम उपदिसे विशाल । श्रावक पडिकमइ उभइ काल, अतीचार टाल । जिहा अध्यात्मी जोगी दृढ, तिसा महाकाय मढ । रग विमासीउ लीये वाद, तिसा पुष्कल प्रासाद । . निहा माहि गुरुया भवन, वाहिर गुरुत्रा उपवन । माहि मनुष्य दख्य, बाहर पंखीयातणा लख्य । माहि बसह भोगी, वाहिर बसइ योगी। माहि चउरासीहट्ट श्रेणि, वाहिर अरहट्ट श्रेणि ।' - ठाम ठाम फूल फगर, इसउ धीर कहइ उजेणी नगर ॥
१ मनुष्यनउ, कुण जानइ गान (इतना पाठ प्रधिक है ) २ इसउ वीर कड्इ उज्ने नगर ।